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Saturday, June 30, 2012

ठिकाने लगा दिए

जीने में जिंदगी ने ज़माने लगा दिए,
आँखों ने खुबसूरत निशाने लगा दिए,
सुहानी शाम जब-२ मुश्किलों से गुजरी,
रखकर लबों पे दो-चार पैमाने लगा दिए,
मिलती नहीं है अब तन्हाइयों से फुर्सत,
गलियों में कई गम के दवाखाने लगा दिए,
धोखे से बच गया, नज़रों को जो पढ़ गया,
जो फंस गए, उनको ठिकाने लगा दिए.........

Friday, June 29, 2012

रद्दी है जिंदगी

रद्दी है जिंदगी सभी समेटने में जुटे हैं,
दो दिल कहीं मिले दो दिल कहीं टुटे हैं,
दुनिया है दोस्तों मज़बूरी का कबाडखाना,
कई किस्मत के हांथो बेरहमी से पिटे हैं,
जिन्दा रह गए, जो गुनेहगार निकले,
शरीफ सारे अपनी शराफत में लुटे हैं,
दुश्मनी पल रही है दोस्ती की आड़ में,
कितने जान के दुश्मन राहो में बंटे हैं....

पराया हुआ है अपना और अपना गैर है

पैमाना नज़रों का छलकने में देर है,
यहाँ रात और वहाँ हो गयी सबेर है,
 
आँखों में नींद कबसे बैठी है मुहं बनाये,
सपनो से हो गयी जबसे इसकी बेर है,
दीवाने बढ रहे हैं हर रोज़ नए - नए,
ऐसे में नहीं अब, पुरानो की खैर है,
रिश्तों की अहमियत बदली है इस तरह,
पराया हुआ है अपना और अपना गैर है.....

Thursday, June 28, 2012

रिश्ते में माँ का लाला लगा

सजा मंदिर, माँ का निराला लगा,
मैं तो रिश्ते में माँ का लाला लगा,
 

हाँथ सर पे, तेरा पड़ा जबसे माँ,
मेरे जीवन में तबसे उजाला लगा,
 
मैं तो रिश्ते में माँ का लाला लगा,

पवन आकर मेरे घर पंखा करे,
बुरी नज़रों पर टीका काला लगा,
मैं तो रिश्ते में माँ का लाला लगा.

दोहा प्रेम का

भरा सरोवर प्रेम का, पिए जो मन में आए,
दिल तोड़ो न दुखियों का, लग जायेगी हाय,


सदा साथ में राखिये, देता हूँ इक राय,
खुदा समझ के राखि लो, जो मन में बस जाए, 


हृयद की सुन्दरता को, बस रखो सदा बचाए,
पुष्प कमल का जाने कब, कीचड में खिल जाए...........

चर्चामंच अनोखा मंच

बेहद खुबसूरत अपना ये चर्चामंच है,
प्रेम के गुच्छों से गुंथा-सजा ये बंच है,
हृयद की भावनाओ से शुशोभित होकर,
फैला रहा मधुर कविताओं का पंच है,
नास्ता होता है अनूठे शब्दों का यहाँ,
यहीं सुन्दर भावों का होता लंच है,
सच्चे साथी हैं, एक साथ, एक जगह,
यहाँ कभी होता नहीं कोई परपंच है......

कौवे की तरह कावँ-२ करते हैं

पल में धूप पल में छावँ करते हैं,
खेला यूँ ही ये लाखों दावँ करते हैं,
बादल हैं या फिर कोई गिरगिट ,
घेर के, छोड़ जाया गावँ करते हैं,
दिखाते हैं रोब गडगडा के बहुत,
फिर कौवे की तरह कावँ-२ करते हैं,
भागने की आदत पड़ गयी है ऐसी,
एक जगह रखा नहीं पावँ करते हैं........

सूखी पलकें

सूखी पलकें एकाएक नम हो जाएँ,
धड़कने दिल की ज़रा कम हो जाएँ,
दुआ है, खुदा से, तेरे जीवन में,
गायब सारे दर्द - वो - गम हो जाएँ,
तेरे घर पड़े दुखों का साया जब - जब,
वो सारे लम्हों के शिकार हम हो जाएँ,
टकराए पावँ से निर्दयी ठोकर जब कभी,
राह के पत्थर भी फूलों से नरम हो जाएँ...

Wednesday, June 27, 2012

दिल में हलचल है कुछ दिनों से

दिल में हलचल है कुछ दिनों से,
मिल रहा दर्द ही दर्द पलछिनो से,
हालात हैं कि सुधर पाते नहीं,
साथ छूटा गया मेरा परिजनों से,
दिन गुजरता है बड़ी मुस्किल में,
और रात कटती नहीं उलझनों से,
चोट मिली है ऐतबार पे, बार - बार,
दोस्त जाकर मिल गए हैं दुश्मनों से,
जहाँ धारदार हथियार काम ना आया,
वहां लाशें बिछ गयी हैं चिलमनों से,
मैं जब - जब, तेरा नाम पुकारता हूँ ,
आवाज आती हैं चिल्लाने की बर्तनों से......

बदल राजा आओ बारिश ले आओ

सूखे हुए पौधों में अब जान फूंक जाओ,
घनघोर घटा लेकर मेरे भी शहर आओ,
सूर्यदेव काम अपना बखूबी निभा रहे हैं,
साथ - २ धुप के शोले भी गिरा रहे हैं, 
अब आपकी है बारी यूँ पीठ न दिखाओ,
खुले आसमाँ को भुजाओं में जकड जाओ,
सुखी हुई जमीं है, १०० फुट घंसी नमी है,
सुबह नहीं सुहानी, और शाम में कमी है,
सागर की जरुरत गागर न गिराओ,
मोटी - २ बूंदों से तालाब भर जाओ........

बदल राजा आओ बारिश ले आओ
बड़ी देर हो गयी अब तो चले आओ..........

Sunday, June 24, 2012

अपने आपे से

बाहर आता हूँ मैं जब भी, अपने आपे से,
निकल आते हैं कुछ शब्द दिल के खाते से,
जतन किये हैं बहुत, कई जोड़ भी लगाये हैं,
पर बारिश रूकती नहीं कभी टूटे हुए छाते से,
वो दौर और था जब लोग जुबाँ पर बिक गए,
अब जंग कोई भी जीती जाती नहीं है पांसे से,
मैं तुझे अपना समझ, समझाता हूँ मगर,
तू गौर तबल कर मेरी बात, इक गैर के नाते से.......

तन्हा सफ़र

सफ़र तन्हा है, वो भी कब तक झेलेंगे,
रिश्तों से खून की होली कब तक खेलेंगे,
अभी तो कहतें हैं किसी की जरुरत नहीं,
देखते हैं कि बूढी उमर अकेले कैसे ढेलेंगे,
पत्थर दिल है, जज्बातों की कदर नहीं,
पावँ से जो लगी ठोकर तो कैसे संभालेंगे,
अनजबी शहर है, पराये लोग हैं हर तरफ,
नाजुक तन को, कैसे मुस्किल में ढालेंगे,
बेशरम जमाना है, यहाँ इंसान कसाई हैं,
बुरी नज़रों की आदत खुद में कैसे डालेंगे.........

हंसके देख ले मुझको

हंसके देख ले मुझको, सुहानी शाम बन जाऊं,
लगकर तेरे जख्मों पे, सुख की बाम बन जाऊं,
शुकूं को भर दूँ तुझमे , चैन मैं बक्श दूँ तुझमे,
तेरी खुशियों के लिए मैं एक इल्जाम बन जाऊं,
गिरे ठोकर जब तू खाकर,तेरी बाहों में मैं आकर, 
तेरी ताकत की खातिर, बेशक बादाम बन जाऊं,
ख़ुशी के रास्ते हमदम, हों तेरे वास्ते हरदम,
काँटों के सफ़र में मैं, गिरके आराम बन जाऊं, 
सफ़र तेरा हो चुनिंदा, न कोई कर सके निंदा,
मैं तेरे वास्ते दिलबर बस ऐसा काम कर जाऊं......

Saturday, June 23, 2012

प्यार क्या - क्या करता है

मैं मीठे-मीठे शब्दों का खुला व्यापार करता हूँ.
यही हरकत है जो मैं, दिन में सौ बार करता हूँ,
खुले दिल का परिंदा हूँ, कई जन्मों से जिन्दा हूँ,
मैं घायल हो चुके दिल पे, यादों की वार करता हूँ,
कभी जीने की हूँ मजा , कभी खौफनाक इक सजा,
मैं जैसे चाहूँ,  जिसको वैसे ही, लाचार करता हूँ,
मैं नीदों को चुरा जाऊं , हो जब-जब बुरा जाऊं,
मुश्किलों से बने लाखों, रखे औज़ार करता हूँ,
दिलों में भरता हूँ दूरी, बड़ी शातिर हूँ मज़बूरी,
सुकून और चैन के सारे, बंद बाज़ार करता हूँ......

मेरी माँ का ये दरबार


सबको भर - भर के देता प्यार, मेरी माँ का ये दरबार,
माँ रखती हैं उसका ध्यान,
जो दिल से देता है सम्मान,
करता खुशियों की बौछार, मेरी माँ का ये दरबार,
कभी आती नहीं बिपदा,
मैं माँ का नाम हूँ जपता,
चैन से भरता है घर-बार, मेरी माँ का ये दरबार,
सुबह और शाम को प्रणाम,
निशदिन करता हूँ ये काम,
बढा देता है हर व्यापार, मेरी माँ का ये दरबार,
हो गया एक रिश्ता नया शुरू,
माँ मेरी अब माँ से बनी गुरु,
बसाता सुख के कई संसार, मेरी माँ का दरबार........

उसके हजारों बहाने

वो आती है अक्सर देर से,
मगर शब्दों के उलट-फेर से,
बनाती है १०० बहाने, लगती है मुझे मनाने,
कहती है घर से मैं निकली हूँ सबेर से,
बचते-बचाते आई मुश्किलों के घेर से,
रखते हैं घर की चाबी, मेरे भैया मेरी भाभी,
अपनों से करके अनबन,
मिलने आती हूँ गैर से,
ताले की जब -जब चाबी है खोई,
अश्कों से साथ मैं से दिल हूँ रोई,
जब कुछ नहीं सुझा तो कूद आई मुण्डेर से......

खतरे की परिस्थिति में तिरंगा हो गया

मोहोब्बत के जहाँ में दंगा हों गया,
तेरे छूने से मैं बिलकुल चंगा हो गया,
बात दिल में जबतक थी ठीक ठाक था,
जुबाँ से बोलते ही बड़ा पंगा हो गया,
बढ गयें जब से देश के अपने ही दुश्मन,
अब खतरे की परिस्थिति में तिरंगा हो गया.......

Friday, June 22, 2012

ख्वाब आँखों के

ख्वाब आँखों के धीरे - धीरे छोटे हो गए,
तमाम लिबास ओढ़े कई मुखोटे हो गए,
बदल चला है समय, दुनिया दारी का,
कि अब इंसान बिन-पेंदी के लोटे हो गए,
ऐसे में कितना - कौन लडेगा भ्रष्टाचारों से,
जब सिक्के सारे अपने देश के खोटे हो गए,
घर में रखे हैं करोडो, मगर पेट भरता नहीं,
दो कौड़ी के चोर भी बड़े मोटे हो गए.......

Thursday, June 21, 2012

एक सवाल खुद से खुद के लिए :

एक सवाल खुद से खुद के लिए :-
 
( कौन हूँ मैं - किसका हूँ मैं - कहाँ हूँ मैं और क्या हूँ मैं )

ना किसी की रातों में, ना किसी की बातों में,
ना किसी की बाहों में, ना किसी की राहों में,
ना किसी की साँसों में, ना किसी की आँखों में,
ना किसी के वादों में, ना किसी की यादों में,
बादल हूँ मैं आवारा, लगता हूँ मैं बंजारा,
कटी पतंग की उझली डोर, न मैं शाम न मैं भोर,
वक़्त की मैं मज़बूरी, अधूरी वस्तु नहीं पूरी,
समंदर की गुजरी लहर, बंजर से बसा शहर,
मोहोब्बत की शिकायत हूँ, बड़ी जालिम बगावत हूँ,
लम्हों की शराफत हूँ, एक पल की आफत हूँ,
बीरानों में खड़ी मंजिल, दर्द हूँ एक मुस्किल,
बिखरी रास्तों की धूल, मैं अनखिला एक फूल,
भटकता एक फ़कीर हूँ, मिट गयी सी लकीर हूँ.....

पिता की नसीहतें

पावँ इतना न पसारो की बाहर निकलें चादर से,
करो दुश्मनों का सम्मान अपने घर में आदर से, 
वर्जित है प्रयोग करना, मुख से कटु शब्दों का,
ये सभी नसीहतें,  हैं कमाई मैंने मेरे फादर से,
रखो संभाले दिल में, इंसानियत की भावना,
देश प्रेम करो, ना कि सिर्फ अपने बिरादर से,
आँखों की हया बक्क्षो,बड़े -बुजुर्ग -स्त्रियों को, 
खुद को बचा कर रखना बहुत दूर निरादर से.......