बह्र : मुतकारिब मुसम्मन सालिम
महक कर सभी को लुभाने कि जिद में,
लुटा है चमन मुस्कुराने कि जिद में,
कहीं खो गई रौशनी कुछ समय की,
निगाहें रवी से मिलाने कि जिद में,
निगाहें रवी से मिलाने कि जिद में,
करूँ क्या करूँ याद वो फिर न आये,
सुबह हो गई भूल जाने कि जिद में,
सुबह हो गई भूल जाने कि जिद में,
गलतकाम करने लगा है जमाना,
बड़ा सबसे खुद को बनाने कि जिद में,
बड़ा सबसे खुद को बनाने कि जिद में,
अँधेरा हुआ दिन-ब-दिन और गहरा,
उजाला जहाँ से मिटाने कि जिद में,
उजाला जहाँ से मिटाने कि जिद में,