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Sunday, March 23, 2014

ग़ज़ल : अरुन शर्मा 'अनन्त'

परस्पर प्रेम का नाता पुरातन छोड़ आया हूँ,
नगर की चाह में मैं गाँव पावन छोड़ आया हूँ,

सरोवर गुल बहारें स्वच्छ उपवन छोड़ आया हूँ.
सुगन्धित धूप से तुलसी का आँगन छोड़ आया हूँ,

कि जिन नैनों में केवल प्रेम का सागर छलकता था,
हमेशा के लिए मैं उनमें सावन छोड़ आया हूँ,

गगनचुम्बी इमारत की लिए मैं लालसा मन में,
बुजुर्गों की हवेली माँ का दामन छोड़ आया हूँ.

मिलन को हर घड़ी व्याकुल तड़पती प्रियतमा का मैं,
विरह की वेदना में टूटता मन छोड़ आया हूँ,

अपरिचित व्यक्तियों से मैं नया रिश्ता बनाने को,
जुड़े बचपन से कितने दिल के बंधन छोड़ आया हूँ.

Thursday, March 13, 2014

गीत : प्रणय - प्रेम

जबसे तुमने प्रेम निमंत्रण स्वीकारा है,
बही हृदय में प्रणय प्रेम की रस धारा है,

मधुर मधुर अहसास अंकुरित होता है,
तन चन्दन की भांति सुगंधित होता है,
जैसे फूलों ने मुझपर गुलशन वारा है,
बही हृदय में प्रणय प्रेम की रस धारा है.

मनभावन मनमोहक सूरत प्यारी सी,
मधुर कंठ मुस्कान मनोरम न्यारी सी,
उज्जवल सूरत देखके होता भिनसारा है,
बही हृदय में प्रणय प्रेम की रस धारा है.

सरस देह सुकुमार लताओं के जैसी,
अनुपम छवि जलजात के सम हृदयस्पर्शी,
अलौकिक श्रृंगार विधाता के द्वारा है,
बही हृदय में प्रणय प्रेम की रस धारा है.

Wednesday, February 26, 2014

कुछ दोहे

सर्वप्रथम ह्रदय लुटे, बाद नींद औ ख्वाब ।
प्रेम रोग सबसे अधिक, घातक और ख़राब ।१।

धीमी गति है स्वास की, और अधर हैं मौन ।
प्रश्न ह्रदय अब पूछता, मुझसे मैं हूँ कौन ।२।

जब जब जकडे देह को, यादों की जंजीर ।
भर भर सावन नैन दो, खूब बहायें नीर ।३।

रुखा सूखा भाग में, कष्ट निहित तकदीर ।
करनी मुश्किल है बयां, व्यथित ह्रदय की पीर ।४।

जीवन भर मजबूरियां, मेरे रहीं करीब ।
सिल ना पाया मैं कभी, अपना फटा नसीब ।५।

Friday, February 21, 2014

कुछ दोहे

प्रेम दिवस में मस्त हो, भूल गए माँ बाप ।
त्रुटियों का आभास ना, और न पश्चाताप ।१।

बदली संस्कृति सभ्यता, बदला है अंदाज ।
संबंधो पर गिर रही, परिवर्तन की गाज ।२।

मैली मन की भावना, दूषित हुए विचार ।
है क्षणभंगुर आजकी, नव पीढ़ी का प्यार ।३।

आजादी है नाम की, नाम मात्र गणतंत्र ।
व्यापित केवल देश में, पाप लोभ षड़यंत्र ।४।

हुआ मान सम्मान का, बंधन है कमजोर ।
बढ़ता जाता है मनुज, स्वयं पतन की ओर ।५।

मानव मस्ती मौज औ, मय की मद में चूर ।
अपने ही करने लगे, जख्मों को नासूर ।६।

Thursday, February 13, 2014

गीत : पुलकित मन का कोना कोना

गीत

पुलकित मन का कोना कोना, दिल की क्यारी पुष्पित है.
अधर मौन हैं लेकिन फिर भी प्रेम तुम्हारा मुखरित है.

मिलन तुम्हारा सुखद मनोरम लगता मुझे कुदरती है,
धड़कन भी तुम पर न्योछावर हरपल मिटती मरती है,
गति तुमसे ही है साँसों की, जीवन तुम्हें समर्पित है,
अधर मौन हैं लेकिन फिर भी प्रेम तुम्हारा मुखरित है.

चहक उठा है सूना आँगन, महक उठी हैं दीवारें,
खुशियों की भर भर भेजी हैं, बसंत ऋतु ने उपहारें,
बाकी जीवन पूर्णरूप से केवल तुमको अर्पित है,
अधर मौन हैं लेकिन फिर भी प्रेम तुम्हारा मुखरित है.

मधुरिम प्रातः सुन्दर संध्या और सलोनी रातें हैं,
भीतर मन में मिश्री घोलें मीठी मीठी बातें हैं,
प्रेम तुम्हारा निर्मल पावन पाकर तनमन हर्षित है,
अधर मौन हैं लेकिन फिर भी प्रेम तुम्हारा मुखरित है.

Thursday, February 6, 2014

बसंत के कुछ दोहे

बदला है वातावरण, निकट शरद का अंत ।
शुक्ल पंचमी माघ की, लाये साथ बसंत ।१।

अनुपम मनमोहक छटा, मनभावन अंदाज ।
ह्रदय प्रेम से लूटने, आये हैं ऋतुराज ।२।

धरती का सुन्दर खिला, दुल्हन जैसा रूप ।
इस मौसम में देह को, शीतल लगती धूप ।३।

डाली डाली पेड़ की, डाल नया परिधान ।
आकर्षित मन को करे, फूलों की मुस्कान ।४।

पीली साड़ी डालकर, सरसों खेले फाग ।
मधुर मधुर आवाज में, कोयल गाये राग ।५।

गेहूँ की बाली मगन, इठलाये अत्यंत ।
पुरवाई भी झूमकर, गाये राग बसंत ।६।

पर्व महाशिवरात्रि का, पावन और विशेष ।
होली करे समाज से , दूर बुराई द्वेष ।७।

अद्भुत दिखता पुष्प से, भौरों का अनुराग ।
और सुगन्धित बौर से, लदा आम का बाग़ ।८।

Thursday, January 23, 2014

कुछ दोहे

ओ बी ओ छंदोत्सव में प्रस्तुत पांच दोहे.
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लिखवा लाई भाग में, गिट्टी गारा रेह ।
झुलस गई है धूप में, तपकर कोमल देह ।।

प्यास बुझाती बैठकर, नैनों को कर बंद ।
कुछ पानी की बूंद का, रोड़ी लें आनंद ।।

रोजी रोटी के लिए, भारी भरकम काम ।
भोर भरोसे राम के, सांझ भरोसे राम ।।

भय कुछ खोने का नहीं, ना पाने की चाह ।
कार्य कार्य बस कार्य में, जीवन हुआ तबाह ।।

जितना किस्मत से मिला, उतने में संतोष ।
ना खुशियों की लालसा, ना कष्टों से रोष ।।

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अरुन शर्मा अनन्त
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Monday, December 23, 2013

आखिरी लम्हा सफ़र का पर निराला दे.

छल कपट लालच बुराई को निकाला दे,
जग हुआ अंधा अँधेरे से, उजाला दे,

झूठ हिंसा पाप से सबको बचा या रब,
शान्ति सुख संतोष देती पाठशाला दे,

शुद्धता जिसमें घुली हो जिसमें सच्चाई,
प्रेम से गूँथी हुई हाथों में माला दे,

स्वर्ण आभूषण की मुझको है नहीं चाहत,
भूख मिट जाए कि उतना ही निवाला दे,

जिंदगी जैसी भी चाहे दे मुझे मौला,
आखिरी लम्हा सफ़र का पर निराला दे..

Friday, December 6, 2013

दो गज़लें : अरुन शर्मा 'अनन्त'

बह्र : खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून  

खूबसूरत हसीं परी होगी,
सोचता हूँ जो जिंदगी होगी,

सादगी कूटकर भरी होगी,
श्याम जैसी वो साँवरी होगी,

ख्वाहिशें क्यूँ भला अधूरी हैं,
मांगने में कहीं कमी होगी,

ख़त्म कर लें विवाद आपस का,
मैं गलत हूँ कि तू सही होगी,

मौत ने खा लिया बता देना,
जिस्म में जान जब नही होगी,

शांत चुपचाप दोस्त रहने दो,
सत्य बोलूँगा खलबली होगी....

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बह्र : मुतकारिब मुसम्मन सालिम

तमन्ना यही एक पूरी खुदा कर,
जमी ओढ़ लूँ मैं फलक को बिछा कर,

शुकूँ से भरी नींद अँखियों को दे दे,
दुआओं तले माँ के बिस्तर लगा कर,

बढ़ा हौसला दे मेरी झोपड़ी का,
बुजुर्गों के आशीष की छत बना कर,

अमन शान्ति का शुद्ध वातावरण हो,
मुहब्बत पिला दे शराफत मिला कर,

सितारों भरी एक दुनिया बसा रब,
अँधेरे का सारा जहाँ अब मिटा कर..

Sunday, December 1, 2013

दो गज़लें : अरुन शर्मा 'अनन्त'

कहानी प्रेम की लिख दो,
ह्रदय का पृष्ठ सादा है,

यही दिल की तमन्ना है,
तुम्हारा क्या इरादा है,

सुनो पर छोड़ मत देना,
इसी का डर जियादा है,

कभी ये कह न देना तुम,
कि वादा सिर्फ वादा है,

जुए की तुम महारानी,
बेचारा दिल तो प्यादा है....
...........................................................................................
गिला शिकवा शिकायत है,
मुहब्बत पर निहायत है,

खुदा का है करम लेकिन,
तुम्हारी भी इनायत है,

कभी मेरी खिलाफत तो,
कभी मेरी हिमायत है,
(हिमायत - तरफदारी)

बुराई देखती हो तुम,
कभी देखो किफ़ायत है,
(किफ़ायत - गुण)

सदा दिल को दुखाने का,
तुम्हें हक़ है रियायत है....

Wednesday, November 27, 2013

कुछ दोहे : अरुन शर्मा 'अनन्त'

ओ बी ओ छंदोत्सव अंक ३२ में सादर समर्पित कुछ दोहे...

दो टीलों के मध्य में, सेतु करें निर्माण ।
जूझ रही हैं चींटियाँ, चाहे जाए प्राण ।1।

दो मिल करती संतुलन, करें नियंत्रण चार ।
देख उठाती चींटियाँ, अधिक स्वयं से भार ।2।

मंजिल कितनी भी कठिन, सरल बनाती चाह ।
कद छोटा दुर्बल मगर, साहस भरा अथाह ।3।

बड़ी चतुर कौशल निपुण, अद्भुत है उत्साह ।
कठिन परिश्रम को नमन, लग्नशीलता वाह ।4।

जटिल समस्या का सदा, मिलकर करें निदान ।
ताकत इनकी एकता, श्रम इनकी पहचान ।5।

Monday, November 18, 2013

दोहे : अरुन शर्मा 'अनन्त'

...................... दोहे ......................

मन से सच्चा प्रेम दें, समझें एक समान ।
बालक हो या बालिका, दोनों हैं भगवान ।।

उत्तम शिक्षा सभ्यता, भले बुरे का ज्ञान ।
जीवन की कठिनाइयाँ, करते हैं आसान ।।

नित सिखलायें नैन को, मर्यादा सम्मान ।
हितकारी होते नहीं, क्रोध लोभ अभिमान ।।

ईश्वर से कर कामना, उपजें नेक विचार ।
भाषा मीठी प्रेम की, खुशियों का आधार ।

सच्चाई ईमान औ, सदगुण शिष्टाचार ।
सज्जन को सज्जन करे, सज्जन का व्यवहार ।।

Sunday, November 10, 2013

प्रिय तुम तो प्राण समान हो

अंतस मन में विद्यमान हो,
तुम भविष्य हो वर्तमान हो,
मधुरिम प्रातः संध्या बेला,
प्रिय तुम तो प्राण समान हो....

अधर खिली मुस्कान तुम्हीं हो,
खुशियों का खलिहान तुम्हीं हो,
तुम ही ऋतु हो, तुम्हीं पर्व हो,
सरस सहज आसान तुम्हीं हो.

तुम्हीं समस्या का निदान हो,
प्रिय तुम तो प्राण समान हो....

पीड़ाहारी प्रेम बाम हो,
तुम्हीं चैन हो तुम आराम हो,
शब्दकोष तुम तुम्हीं व्याकरण,
तुम संज्ञा हो सर्वनाम हो.

तुम पूजा हो तुम्हीं ध्यान हो,
प्रिय तुम तो प्राण समान हो....

Friday, October 25, 2013

ग़ज़ल : हमेशा के लिए गायब लबों से मुस्कुराहट है

बह्र : हज़ज मुसम्मन सालिम
१२२२, १२२२, १२२२, १२२२,
....................................................

हमेशा के लिए गायब लबों से मुस्कुराहट है,
मुहब्बत में न जाने क्यों अजब सी झुन्झुलाहट है,

निगाहों से अचानक गर बहें आंसू समझ लेना,
सितम ढाने ह्रदय पर हो चुकी यादों की आहट है,

दिखा कर ख्वाब आँखों को रुलाया खून के आंसू,
जुबां पे बद्दुआ बस और भीतर चिडचिड़ाहट है,

चला कर हाशिये त्यौहार की गर्दन उड़ा डाली,
दिवाली की हुई फीकी बहुत ही जगमगाहट है,

बदलने गाँव का मौसम लगा है और तेजी से,
किवाड़ों में अदब की देख होती चरमराहट है...

Sunday, October 13, 2013

बँधी भैंसें तबेले में

ग़ज़ल
बह्र : हज़ज़ मुरब्बा सालिम
1222 , 1222 ,
.........................................................
बँधी भैंसें तबेले में,
करें बातें अकेले में,

अजब इन्सान है देखो,
फँसा रहता झमेले में,

मिले जो इनमें कड़वाहट,
नहीं मिलती करेले में,


हुनर जो लेरुओं में है,
नहीं इंसा गदेले में,


भले हम जानवर होकर,
यहाँ आदम के मेले में,

गुरु तो हैं गुरु लेकिन,
भरा है ज्ञान चेले में..

Wednesday, October 9, 2013

जय माता दी




नमन कोटिशः आपको, हे नवदुर्गे मात ।
श्री चरणों में हो सुबह, श्री चरणों में रात ।।

नमन हाथ माँ जोड़कर, विनती बारम्बार ।
हे जग जननी कीजिये, सबका बेड़ापार ।।

हे वीणा वरदायिनी, हे स्वर के सरदार ।
सुन लो हे ममतामयी, करुणा भरी पुकार ।।

केवल इतनी कामना, कर रखता उपवास ।
मन में मेरे आपका, इक दिन होगा वास ।।

सुबह शाम वंदन नमन, मन से माते जाप ।
पूर्ण करो हर कामना, इस बालक की आप ।।

Monday, September 30, 2013

ग़ज़ल : हमारा प्रेम होता जो कन्हैया और राधा सा

ग़ज़ल
(बह्र: हज़ज़ मुसम्मन सालिम )
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन
..........................................................

अयोध्या में न था संभव जहाँ कुछ राम से पहले,
वहीँ गोकुल में कुछ होता न था घनश्याम से पहले,

बड़े ही प्रेम से श्री राम जी लक्ष्मण से कहते हैं,
अनुज बाधाएँ आती हैं भले हर काम से पहले,

समर्पित गोपियों ने कर दिया जीवन मुरारी को,
नहीं कुछ श्याम से बढ़कर नहीं कुछ श्याम से पहले,

हमारा प्रेम होता जो कन्हैया और राधा सा,
समझ लेते ह्रदय की भावना पैगाम से पहले,

भले लक्ष्मी नारायण कहता है संसार हे राधा,
तुम्हारा नाम भी आएगा मेरे नाम से पहले....

Thursday, September 26, 2013

दादाजी ने ऊँगली थामी

आल्हा छंद - 16 और 15 मात्राओं पर यति. अंत में गुरु-लघु , अतिशयोक्ति


 दादाजी ने ऊँगली थामी, शैशव चला उठाकर पाँव ।
मानों बरगद किसी लता पर, बिखराता हो अपनी छाँव ।।


फूलों से अनभिज्ञ भले पर, काँटों की रखता पहचान ।
अहा! बड़ा ही सीधा सादा, भोला भाला यह भगवान ।।


शिशु की अद्भुत भाषा शैली, शिशु का अद्भुत है विज्ञान ।
बिना पढ़े ही हर भाषा के, शब्दों का रखता है ज्ञान ।।


सुनो झुर्रियां तनी नसें ये, कहें अनुभवी मुझको जान।
बचपन यौवन और बुढ़ापा, मुन्ने को सिखलाता ज्ञान ।। 


जन्म धरा पर लिया नहीं है, चिर सम्बंधों का निर्माण |
अपनेपन की मधुर भावना, फूँक रही रिश्तों में प्राण ||

Friday, September 20, 2013

माँ की आँचल के तले, बच्चों का संसार

 शिशु बैठा है गोद में, मूंदे दोनों नैन ।
मात लुटाती प्रेम ज्यों, बरसे सावन रैन ।।

जननी चूमे प्रेम से, शिशु को बारम्बार ।
ज्यों शंकर के शीश से, बहे गंग की धार ।।

माँ की आँचल के तले, बच्चों का संसार।
धरती पर संभव नहीं, माँ सा सच्चा प्यार ।।

माँ तेरे से स्पर्श का, सुखद सुखद एहसास ।
तेरी कोमल गोद माँ, कहीं स्वर्ग से खास ।।

नैना सागर भर गए, करके तुझको याद ।
माता तेरे प्रेम का, संभव नहिं अनुवाद ।।

फिर से आकर चूम ले, सूना मेरा माथ ।
वादा कर माँ छोड़कर, जायेगी ना साथ ।।

Monday, September 16, 2013

मैं पिता जबसे हुआ चिंतित हुआ

दूरियों का ही समय निश्चित हुआ,
कब भला शक से दिलों का हित हुआ,


भोज छप्पन हैं किसी के वास्ते,
और कोई स्वाद से वंचित हुआ,


क्या भरोसा देश के कानून पर,
है बुरा जो वो भला साबित हुआ,


बेटियों सँग हादसे यूँ देखकर,
मैं पिता जबसे हुआ चिंतित हुआ,


सभ्यता की देख उड़ती धज्जियाँ,
मन ह्रदय मेरा बहुत कुंठित हुआ..