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Saturday, March 10, 2012

अजब सी ये उलझन

अजब सी ये उलझन, कुछ अलग कशमकश है.
जहर से  भी घातक  मोहोब्बत का रश है.  
संभल जाऊं खुद मै या, संभालूं इस दिल को.
अब नहीं जोर चलता और नहीं चलता वश है.
मेरे ही क़त्ल में मुझे दोष कहती. 
बेवफा है सारी दुनिया , बेवफाई में यश है.  
चला मै जहाँ से, रुका भी वही हूँ.
वही ये घडी है, वही ये बरस है.
तुझे भी तेरे जैसा साथी मिले जो,
यही दिल की इच्छा यही बस तरस है.
कैसे कहूँ क्या हालत है मेरी.
जिन्दा हूँ लेकिन जख्मी हर नस है.
कुछ भी कहे तू, है मैंने ये माना कि .
दिल तोड़ जाने की तुझमे हवस है.

जिन्दा हूँ मगर

जिन्दा हूँ मै, मगर दिल मरा है, सूखा जखम वो अभी तक हरा है.
नयी है मोहोब्बत पर किस्से पुराने, खुशी में नहीं गम में भरा है.  
रोने से कभी दिल नहीं भरता, हसने का मौका मिलता ज़रा है.
कभी तेरे बिन चैन मिलता नहीं था, तुझे से मेरा दिल इतना डरा है.
मंजिल मिलेगी किसी को कहाँ से रास्ता ये मुस्किल बड़ा खुरदरा है .

मोहोब्बत दगा देती है

मोहोब्बत इस कदर दगा देती है, दर्द उम्रभर का जगा देती है.

पराये कर देती है रिश्ते सारे, यादों का साया पीछे लगा देती है.

गम से भर देती है घर सारा, ख़ुशी को मार कर भगा देती है.

सूख पाते नहीं फिर कभी  ये जख्म  इतना ज्यादा सगा देती है.

मिलने आये है मेहमान

मिलने आये है मेहमान मेरे दिल को, करके रखा है परेशान मेरे दिल को.

जखम कुरेदते है हर एक रोज मेरे, यादें करती है बड़ा हैरान मेरे दिल को.

पहले मार दिया जिन्दा धडकनों को, फिर घोषित किया बेजान मेरे दिल को.

प्यार के काबिल न अब समझा मुझको , टूटा समझा है  सामान मेरे दिल को.

जता कर बेंतेहा मोहोब्बत मुझसे , दिया धोखा ऐसा अनजान मेरे दिल को.

खुद को दर्द खुद को दोष दिया मैंने, क्यूँ इतना चाहा है बेईमान तेरे दिल को.