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Wednesday, May 1, 2013

ग़ज़ल : आसमां की सैर करने चाँद चलकर आ गया

बह्र : रमल मुसम्मन सालिम

वक्त ने करवट बदल ली जो अँधेरा छा गया,
आसमां की सैर करने चाँद चलकर आ गया,

प्यार के इस खेल में मकसद छुपा कुछ और था,
बोल कर दो बोल मीठे जुल्म दिल पे ढा गया,

बाढ़ यूँ ख्वाबों की आई है जमीं पर नींद की,
चैन तक अपनी निगाहों का जमाना खा गया,

झूठ का बाज़ार है सच बोलना बेकार है,
झूठ की आदत पड़ी है झूठ मन को भा गया,

तालियों की गडगडाहट संग बाजी सीटियाँ,
देश का नेता हमारा यूँ शहद बरसा गया.....

15 comments:

  1. वाह ... हमेशा की तरह बेहतरीन प्रस्‍तुति

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  2. बहुत बेहतरीन सुंदर गजल ,,,अरुन जी

    RECENT POST: मधुशाला,

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  3. बहुत ही बेहतरीन और लाजबाब ग़ज़ल की प्रस्तुति,आभार.

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  4. प्यार के इस खेल में मकसद छुपा कुछ और था,
    बोल कर दो बोल मीठे जुल्म दिल पे ढा गया,
    .. वाह अरुण जी ..क्या बात कही है...बेहतरीन गज़ल!

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  5. मत्ला लाजवाब लगा ....

    आसमां की सैर करने चाँद चलकर आ गया ....

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  6. bahut sundar gajal likhi hai aapne badhaai arun ji

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  7. सुंदर रचना मन को छूती हुई
    बधाई


    jyoti-khare.blogspot.in
    कहाँ खड़ा है आज का मजदूर------?

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  8. झूठ का बाज़ार है,सच बोलना बेकार है
    झूठ की आदत पड़ी है झूठ मन को भा गया...
    सुन्दर कथ्य!
    मनमोहक गज़ल के लिए सादर बधाई स्वीकारें।
    सादर

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  9. bahut hi sundar gajal :) mujhe apke blog ka desing bhi bahut sundar laga

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  10. बोल कर दो बोल मीठे,जुल्म दिल पे ढा गया

    इस एक लाइन ने पूरी गज़ल का सार कह दिया............

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  11. बहुत सुंदर ग़ज़ल..... प्रस्तुति!!

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  12. लाजवाब अरुण की लाजवाब गजल ,बधाई अरुण

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  13. झूठ का बाज़ार है सच बोलना बेकार है,
    झूठ की आदत पड़ी है झूठ मन को भा गया,

    ...वाह! बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...

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  14. acchi prastuti! badhaiyan!

    -Abhijit (Reflections)

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  15. बहुत सुंदर गजल अरुन जी !
    डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    lateast post मैं कौन हूँ ?
    latest post परम्परा

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