बहर : हज़ज़ मुसम्मन सालिम
१२२२, १२२२, १२२२, १२२२,
....................................................
तुझे भूला हुआ होगा तुझे बिसरा हुआ होगा,
कहीं तो टूटके सीने से दिल बिखरा हुआ होगा,
बदलता है नहीं मेरी निगाहों का कभी मौसम,
असर छोटी सी कोई बात का गहरा हुआ होगा ,
तनिक हरकत नहीं करता सिसकती आह सुन मेरी,
अगर गूंगा नहीं तो दिल तेरा बहरा हुआ होगा,
जिसे अब ढूंढती है आज के रौशन जहाँ में तू,
तमस की गोद में बिस्तर बिछा पसरा हुआ होगा,
चली आई मुझे तू छोड़ कर चुपचाप राहों में,
तुझे महसूस शायद मुझसे ही खतरा हुआ होगा,
कहा रुकना नहीं जाना पलटकर मैं अभी आई,
अरुन अब तक उसी बारिश तले ठहरा हुआ होगा..
१२२२, १२२२, १२२२, १२२२,
..............................
तुझे भूला हुआ होगा तुझे बिसरा हुआ होगा,
कहीं तो टूटके सीने से दिल बिखरा हुआ होगा,
बदलता है नहीं मेरी निगाहों का कभी मौसम,
असर छोटी सी कोई बात का गहरा हुआ होगा ,
तनिक हरकत नहीं करता सिसकती आह सुन मेरी,
अगर गूंगा नहीं तो दिल तेरा बहरा हुआ होगा,
जिसे अब ढूंढती है आज के रौशन जहाँ में तू,
तमस की गोद में बिस्तर बिछा पसरा हुआ होगा,
चली आई मुझे तू छोड़ कर चुपचाप राहों में,
तुझे महसूस शायद मुझसे ही खतरा हुआ होगा,
कहा रुकना नहीं जाना पलटकर मैं अभी आई,
अरुन अब तक उसी बारिश तले ठहरा हुआ होगा..
बहुत सुन्दर गजल ......
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन लाजबाब गजल ,,,
ReplyDeleteRECENT POST : सुलझाया नही जाता.
:D :D : D
ReplyDeleteकितना भी कोई
लिख ले जाता है
टिप्पणी करने में
ही जैसे सब कुछ
किसी की जेब का
चला जाता है !
सुंदर बहुत खूब ! :)
खुबसूरत-
ReplyDeleteबधाई भाई-
बहुत सुन्दर ग़ज़ल !
ReplyDeletelatest post नेताजी फ़िक्र ना करो!
latest post नेता उवाच !!!
बदलता है नहीं मेरी निगाहों का कभी मौसम,
ReplyDeleteअसर छोटी सी कोई बात का गहरा हुआ होगा ,...
बहुत लाजवाब शेर ... मेरी पसंदीदा बहर ... पूरी गज़ल में नायाब शेर हैं अरुण जी ... बधाई ...
बेहतरीन गजल ....
ReplyDeleteबड़ी ही दिलचस्प रचना है ,एक एक शेर दिल को छु जाने वाला है। बहुत ही उम्दा भाई।
ReplyDelete
ReplyDeleteतनिक हरकत नहीं करता सिसकती आह सुन मेरी,
अगर गूंगा नहीं तो दिल तेरा बहरा हुआ होगा,
ढेरो शुभकामनाये अरुण भाई ऐसे ही लिखते रहो
यहाँ भी पधारे
http://shoryamalik.blogspot.in/2013/08/blog-post_6131.html
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज वृहस्पतिवार (22-06-2013) के "संक्षिप्त चर्चा - श्राप काव्य चोरों को" (चर्चा मंचः अंक-1345)
पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
तनिक हरकत नहीं करता सिसकती आह सुन मेरी,
ReplyDeleteअगर गूंगा नहीं तो दिल तेरा बहरा हुआ होगा,
ये सारा जिस्म थक के दोहरा हुआ होगा ,
मैं सजदे में झुका था आपको धोखा हुआ होगा।
चली आई मुझे तू छोड़ कर चुपचाप राहों में,
तुझे महसूस शायद मुझसे ही खतरा हुआ होगा,
ये कैसी रेल धक्कम पेल है भैया ,
नहीं गणतंत्र ये, तुझको मुफत राशन मिला होगा।
बहुत बढ़िया प्रस्तुति है अरुण भाई
बहुत खूब, बेहतरीन..
ReplyDeleteहिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच} के शुभारंभ पर आप को आमंत्रित किया जाता है। कृपया पधारें आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें | आपके नकारत्मक व सकारत्मक विचारों का स्वागत किया जायेगा |
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति ,खुश रहो
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुति।।।
ReplyDeleteकहा रुकना नहीं जाना पलटकर मैं अभी आई,
ReplyDeleteअरुन अब तक उसी बारिश तले ठहरा हुआ होगा..
.........बहुत बढ़िया प्रस्तुति है अरुण भाई
sharma ji hr sher achchhe lage .....bs yu hi Gajalon ko jindabad karate rahiye .....abhar.
ReplyDeletebahut badhiya sirji..
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