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Tuesday, August 6, 2013

तुम प्रेम प्रतिज्ञा भूल गई

तुम प्रेम प्रतिज्ञा भूल गई,
मैं भूल गया दुनिया दारी,
पहले दिल का बलिदान दिया,
हौले - हौले धड़कन हारी.

खुशियाँ घर आँगन छोड़ चली,
तुम मुझसे जो मुँह मोड़ चली,
मैं अपनी मंजिल भटक गया,
इन दो लम्हों में अटक गया,

मुरझाई खिलके फुलवारी,
हौले - हौले धड़कन हारी.

मन व्याकुल है बेचैनी है,
यादों की छूरी पैनी है,
नैना सागर भर लेते हैं,
हम अश्कों से तर लेते हैं,

हर रोज चले दिल पे आरी,
हौले - हौले धड़कन हारी...

13 comments:

  1. वाह बहुत खूब अरुण भाई

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  2. धड़कन पर अधिकार तुम्हारा

    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ

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  3. जवाब नहीं बहुत खूब रचना...

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  4. बहुत सुंदर शब्द पिरोये हैं इस धडकन के धागों में

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  5. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति,बहुत सुन्दर.

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  6. हर रोज चले दिल पे आरी,
    हौले - हौले धड़कन हारी...yesa hi hota hai....so nice

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  7. सुंदर पंक्तियों से सजी लाजबाब रचना ,,,

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  8. बढ़िया प्रस्तुति है। यादों की छुरियाँ पैनी हैं। कुछ तेरी हैं कुछ मेरी हैं।

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  9. अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर अरुन भाई..
    आपकी कविताएँ वाकई अच्छी हैं..

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