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Friday, March 18, 2016

मैं मरुथल

हम दोनों के संबंधों की, केवल इतनी है सच्चाई ।
मैं मरुथल पसरा मीलों तक, तुम निर्झरणी सिंधु समाई ।।

मेरा जीवन ज्वलनशील है,
तुममें पूर्ण प्रेम, शीतलता,
मैं कठोर भीतर बाहर से,
तुममें केवल निहित सरलता,


युगों युगों से मैं प्यासा हूँ, मेरी तृष्णा बुझ ना पाई ।
मैं मरुथल पसरा मीलों तक, तुम निर्झरणी सिंधु समाई ।।
# अरुन अनन्त #

Tuesday, March 15, 2016

विवशता

टूट रहा है धीरे धीरे मन घिर कर बाधाओं में।
नित्य विवशता डाल रही है बेड़ी मेरे पावों में।।

 मध्य हृदय में प्रश्न अनगिनत व्याकुलता भर चलता हूँ,
किन्तु मुख पर लिए प्रसन्नता प्रतिदिन सबसे मिलता हूँ,

गुजर रहे हैं जैसे तैसे रातों दिन चिंताओं में।
नित्य विवशता डाल रही है बेड़ी मेरे पावों में।।

सुविधाओं से वंचित मेरा आखिर कब तक जीवन होगा,
सुख का पूर्ण आगमन कब तक अंत दुखों का सीजन होगा,

बाल्यकाल सम यौवन भी अब जाता दिखे अभावों में।
नित्य विवशता डाल रही है बेड़ी मेरे पावों में।।

अरुन अनन्त