तुम्हे पाने की दिल में, उठी जो जिद नहीं होती,
दुनिया मेरी इस तरहा, लुटी हरगिज नहीं होती,
भीगी-भीगी आँखें हैं, सुबह से शाम तक यारों,
तेरी चाहत जो होती न, ये बारिश नहीं होती,
तेरी यादों का हर पल, मुझे बेचैन करता है,
मैं पागल कैसे होता, अगर साजिश नहीं होती,
हर पल अँधेरे से यूँ, दिलों के हैं भरे कमरें,
दिल के दर पे कोई, डोर जो बंदिश नहीं होती,
नादिर तेरी चाहत कैद है, दिन रात साँसों में,
ये दिल पत्थर यूँ होता न, जो रंजिश नहीं होती।।
नादिर - अनमोल
बंदिश समझो बन्दगी, इधर उधर मत ताक ।
ReplyDeleteबहु-तेरे है ताक में, तेरे आशिक-काक ।
तेरे आशिक-काक, रंजिशे रविकर रखते ।
रही उन्हीं की धाक, हमेशा साजिश करते ।
बारिस में मत भीग, मिलेगा उन्हें बहाना ।
मत कर जिद नादिरे, प्यार तेरा है पाना ।।
वाह सर वाह मजा आ गया आपकी रोचक टिप्पणियां जब भी मिलती हैं ह्रदय गद-2 हो जाता है।
Deleteतहे दिल से शुक्रिया रविकर सर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अरुन जी...मन खुश हो गया पढ़ कर....बेहतरीन रचना
ReplyDeleteबहुत-2 शुक्रिया संजय भाई
Deleteतेरी यादों का हर पल, मुझे बेचैन करता है,
ReplyDeleteमैं पागल कैसे होता, अगर साजिश नहीं होती,.... बेहद खूबसूरत गज़ल
हर पल तेरी याद ने यूँ दीवाना बना रखा है
सारे आलम से ही बेगाना बना रखा है
करने को सुबह-शाम,तेरी ही इबादत को ए सनम
अपनी आँखों में हमने सनमखाना बना रखा है
वाह शालिनी जी क्या बात है, उम्दा क्या कहना आपका
Deleteबहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति .
ReplyDeleteबहुत- शुक्रिया सक्सेना सर
Deleteवाह ... वाह ..बहुत ही बढिया लिखा है आपने ...
ReplyDeleteबधाई
बहुत-2 शुक्रिया सदा दीदी, यूँ ही अपना स्नेह अनुज पर बनाये रखें
Deleteवाह,,,बहुत खूब अरुन जी,,पढकर दिल खुश हो गया,,,,बधाई,,,,
ReplyDeleteसभी ब्लॉगर परिवार को करवाचौथ की बहुत बहुत शुभकामनाएं,,,,,
RECENT POST : समय की पुकार है,
आदरणीय धीरेन्द्र सर अनेक-2 धन्यवाद.
Deletebahut hi badhiya gajal.....
ReplyDelete:-)
धन्यवाद रीना जी
Deleteअगर दिल में जिद ना उठी होती तो इतनी खूबसूरत ग़ज़ल नहीं होती...
ReplyDeleteवाह संध्या जी क्या बात है शुक्रिया.
Deleteतेरी यादों का हर पल, मुझे बैचेन करता है
ReplyDeleteमैं पागल कैसे होता, अगर साजिस नही होती। .....वाह बहुत लाजवाब गजल।
मख्मूर सईदी जी के 2 शेर याद आये मुझे ...
जो ये शर्ते-तअल्लुक़ है,कि है हम को जुदा रहना
तो ख़्वाबों में भी क्यूँ आओ,खयालों में भी क्या रहना
पुराने ख्वाब पलकों से झटक दो,सोचते क्या हो
मुकद्दर खुश्क पत्तों का है शाखों से जुदा रहना .
वाह रोहितास भाई उम्दा शे'र साझा करने के लिए, आपको रचना पसंद आई शुक्रिया मित्र.
Deleteबढ़िया रचना !
ReplyDeleteपता नहीं कैसे जीते हैं लोग.... जिन्हें चाहत से चाहत नहीं होती...
सत्य कहा है अनीता जी आपने, पता नहीं कैसे जीतें हैं लोग.
Deleteबढिया लिखा आपने ..
ReplyDeleteतहे दिल से शुक्रिया आदरणीया संगीता पुरी जी
Deletekya khoob behtareen prastuti
ReplyDeleteधन्यवाद मधु जी
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