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Friday, November 2, 2012

तुम्हे पाने की जिद

तुम्हे पाने की दिल में, उठी जो जिद नहीं होती,
दुनिया मेरी इस तरहा, लुटी हरगिज नहीं होती,

भीगी-भीगी आँखें हैं, सुबह से शाम तक यारों,
तेरी चाहत जो होती न, ये बारिश नहीं होती,

तेरी यादों का हर पल, मुझे बेचैन करता है,
मैं पागल कैसे होता, अगर साजिश नहीं होती,

हर पल अँधेरे से यूँ, दिलों के हैं भरे कमरें,
दिल के दर पे कोई, डोर जो बंदिश नहीं होती,

नादिर तेरी चाहत कैद है, दिन रात साँसों में,
ये दिल पत्थर यूँ होता न, जो रंजिश नहीं होती।।

नादिर - अनमोल

25 comments:

  1. बंदिश समझो बन्दगी, इधर उधर मत ताक ।

    बहु-तेरे है ताक में, तेरे आशिक-काक ।

    तेरे आशिक-काक, रंजिशे रविकर रखते ।

    रही उन्हीं की धाक, हमेशा साजिश करते ।

    बारिस में मत भीग, मिलेगा उन्हें बहाना ।

    मत कर जिद नादिरे, प्यार तेरा है पाना ।।

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    1. वाह सर वाह मजा आ गया आपकी रोचक टिप्पणियां जब भी मिलती हैं ह्रदय गद-2 हो जाता है।

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  2. तहे दिल से शुक्रिया रविकर सर

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  3. बहुत सुन्दर अरुन जी...मन खुश हो गया पढ़ कर....बेहतरीन रचना

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    1. बहुत-2 शुक्रिया संजय भाई

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  4. तेरी यादों का हर पल, मुझे बेचैन करता है,
    मैं पागल कैसे होता, अगर साजिश नहीं होती,.... बेहद खूबसूरत गज़ल

    हर पल तेरी याद ने यूँ दीवाना बना रखा है
    सारे आलम से ही बेगाना बना रखा है
    करने को सुबह-शाम,तेरी ही इबादत को ए सनम
    अपनी आँखों में हमने सनमखाना बना रखा है

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    1. वाह शालिनी जी क्या बात है, उम्दा क्या कहना आपका

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  5. बहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति .

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    1. बहुत- शुक्रिया सक्सेना सर

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  6. वाह ... वाह ..बहुत ही बढिया लिखा है आपने ...
    बधाई

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    1. बहुत-2 शुक्रिया सदा दीदी, यूँ ही अपना स्नेह अनुज पर बनाये रखें

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  7. वाह,,,बहुत खूब अरुन जी,,पढकर दिल खुश हो गया,,,,बधाई,,,,
    सभी ब्लॉगर परिवार को करवाचौथ की बहुत बहुत शुभकामनाएं,,,,,

    RECENT POST : समय की पुकार है,

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    1. आदरणीय धीरेन्द्र सर अनेक-2 धन्यवाद.

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  8. अगर दिल में जिद ना उठी होती तो इतनी खूबसूरत ग़ज़ल नहीं होती...

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    1. वाह संध्या जी क्या बात है शुक्रिया.

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  9. तेरी यादों का हर पल, मुझे बैचेन करता है
    मैं पागल कैसे होता, अगर साजिस नही होती। .....वाह बहुत लाजवाब गजल।

    मख्मूर सईदी जी के 2 शेर याद आये मुझे ...

    जो ये शर्ते-तअल्लुक़ है,कि है हम को जुदा रहना
    तो ख़्वाबों में भी क्यूँ आओ,खयालों में भी क्या रहना

    पुराने ख्वाब पलकों से झटक दो,सोचते क्या हो
    मुकद्दर खुश्क पत्तों का है शाखों से जुदा रहना .

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    1. वाह रोहितास भाई उम्दा शे'र साझा करने के लिए, आपको रचना पसंद आई शुक्रिया मित्र.

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  10. बढ़िया रचना !
    पता नहीं कैसे जीते हैं लोग.... जिन्हें चाहत से चाहत नहीं होती...

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    1. सत्य कहा है अनीता जी आपने, पता नहीं कैसे जीतें हैं लोग.

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  11. Replies
    1. तहे दिल से शुक्रिया आदरणीया संगीता पुरी जी

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