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Wednesday, November 27, 2013

कुछ दोहे : अरुन शर्मा 'अनन्त'

ओ बी ओ छंदोत्सव अंक ३२ में सादर समर्पित कुछ दोहे...

दो टीलों के मध्य में, सेतु करें निर्माण ।
जूझ रही हैं चींटियाँ, चाहे जाए प्राण ।1।

दो मिल करती संतुलन, करें नियंत्रण चार ।
देख उठाती चींटियाँ, अधिक स्वयं से भार ।2।

मंजिल कितनी भी कठिन, सरल बनाती चाह ।
कद छोटा दुर्बल मगर, साहस भरा अथाह ।3।

बड़ी चतुर कौशल निपुण, अद्भुत है उत्साह ।
कठिन परिश्रम को नमन, लग्नशीलता वाह ।4।

जटिल समस्या का सदा, मिलकर करें निदान ।
ताकत इनकी एकता, श्रम इनकी पहचान ।5।

Monday, November 18, 2013

दोहे : अरुन शर्मा 'अनन्त'

...................... दोहे ......................

मन से सच्चा प्रेम दें, समझें एक समान ।
बालक हो या बालिका, दोनों हैं भगवान ।।

उत्तम शिक्षा सभ्यता, भले बुरे का ज्ञान ।
जीवन की कठिनाइयाँ, करते हैं आसान ।।

नित सिखलायें नैन को, मर्यादा सम्मान ।
हितकारी होते नहीं, क्रोध लोभ अभिमान ।।

ईश्वर से कर कामना, उपजें नेक विचार ।
भाषा मीठी प्रेम की, खुशियों का आधार ।

सच्चाई ईमान औ, सदगुण शिष्टाचार ।
सज्जन को सज्जन करे, सज्जन का व्यवहार ।।

Sunday, November 10, 2013

प्रिय तुम तो प्राण समान हो

अंतस मन में विद्यमान हो,
तुम भविष्य हो वर्तमान हो,
मधुरिम प्रातः संध्या बेला,
प्रिय तुम तो प्राण समान हो....

अधर खिली मुस्कान तुम्हीं हो,
खुशियों का खलिहान तुम्हीं हो,
तुम ही ऋतु हो, तुम्हीं पर्व हो,
सरस सहज आसान तुम्हीं हो.

तुम्हीं समस्या का निदान हो,
प्रिय तुम तो प्राण समान हो....

पीड़ाहारी प्रेम बाम हो,
तुम्हीं चैन हो तुम आराम हो,
शब्दकोष तुम तुम्हीं व्याकरण,
तुम संज्ञा हो सर्वनाम हो.

तुम पूजा हो तुम्हीं ध्यान हो,
प्रिय तुम तो प्राण समान हो....