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Friday, March 16, 2012

न जीने का जी करे न मरने का जी करे

न जीने का जी करे न मरने का जी करे
अब बात भी किसी से न करने का जी करे
आदत बना ली मैंने जब सहना ही सितम था
जख्मों के दर्द से न डरने का जी करे
अकेला हूँ मैं और अकेला मेरा दिल है
खाली जगह दिल की न भरने का जी करे
कभी काम था मुझे तुझे याद करते रहना
तेरे याद से अब न गुजरने का जी करे
बर्बाद कर दी मेरी दुनिया प्यार ने
चाहके भी अब न सुधरने का जी करे
पागल हो गया इस सदमे से मेरा दिल
इस हाले-दिल से न उभरने का जी करे.

3 comments:

  1. प्यार का असर है ये ...
    इस छलावे से बाहर आना पड़ता है ... अच्छा लिखा है ...

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  2. बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना...

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