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Saturday, March 31, 2012

न दिल कोई चाहत, न मुझको कुछ पसंद

न दिल कोई चाहत, न मुझको कुछ पसंद,
चल-चल के हौले-हौले धड़कन भी गयी बंद,
उलझी हुई पहेली, मोहोब्बत की तू सहेली,
दोहा सजा
ऊँ तुझपे या उतारूँ तुझपे छंद,
सोंच-२ लिखता हूँ डरता भी हूँ कलम से,
गलती से बन
ना जाए बदनाम पंक्ति चंद,
कश्ती लेजाऊँ  किसी और फिर शहर में,
हवा के तेज झोकें हो जायें थोडा मंद....

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