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Wednesday, March 14, 2012

मिली दर्द की कमाई

मिली दर्द की कमाई, पाया जख्मो का मेहनताना
मैंने गम से है पिरोया,  मेरे घर हर खजाना
खुशियों की बंद करदी खिड़की भी आज मैंने
भरना न पड़े मुझको कही और भी हरजाना
यूँ तो एक पल भी मुझको कही चैन नहीं मिलता
अब अच्छा नहीं लगे तेरी यादों का पास आना
दुखती बहुत थी मुझको ये भी अदा तेरी
यूँ बार बार तेरा हर वादों से मुकरजना
इंसाफ की मिसाल कुछ ऐसी भी है
मेरे ही कल्त पर मुझे लगा है जुरमाना

5 comments:

  1. बहुत खूब. सुंदर रचना.

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  2. सुंदर अतिसुन्दर अच्छी लगी, बधाई
    (कृपया वर्ड वरिफिकेसन हटा दीजिये )

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  3. बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति...

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  4. आप सबको प्रेम पूर्वक प्रणाम और धन्यवाद

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