हो रहे हैं टुकड़े मेरे जिस्म के,
दर्द करते हैं दर्द कई किस्म के,
हवा गम की तबियत जुदा करती है,
सांस लेने से बढ़ें घाव जख्म के,
इंतज़ार की उमर बड़ी है कितनी,
वक़्त बाकी है अभी काँधे की रस्म के.....
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आइये आपका स्वागत है, इतनी दूर आये हैं तो टिप्पणी करके जाइए, लिखने का हौंसला बना रहेगा. सादर
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