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Sunday, April 29, 2012

दवा कोई भी जखम भर नहीं पाई

दवा कोई भी मेरे जखम भर नहीं पाई ,
बिगड़े हालात तो हालत सुधर नहीं पाई,
मुश्किलों ने दरवाजे पर ताला लगा दिया,
रौशनी कमरों में फिर कभी भर नहीं पाई,
मैं हर दिन तिनका -तिनका मरा हूँ,
यादें तेरी लेकिन मुझमे मर नहीं पाई,
घंटों बैठा रहता हूँ समंदर किनारे,
जो डुबा दे मुझे वो लहर नहीं आई....

12 comments:

  1. मैं हर दिन तिनका -तिनका मरा हूँ,
    यादें तेरी लेकिन मुझमे मर नहीं पाई,

    ....बहुत खूब !

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  2. बहुत बहुत शुक्रिया (SIR)

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  3. वाह...................

    बहुत खूबसूरत....

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  4. बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति...

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  5. मुश्किलों ने दरवाजे पर ताला लगा दिया,
    रौशनी कमरों में फिर कभी भर नहीं पाई

    Gahari Abhivykti...

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  6. सुंदर भावाभिव्यक्ति।

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  7. गहन भाव व्यक्त करती सुन्दर रचना.....

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  8. Aaj yah rachna CHARCHA_MANCH par hai |

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  9. शोभा चर्चा-मंच की, बढ़ा रहे हैं आप |
    प्रस्तुति अपनी देखिये, करे संग आलाप ||

    मंगलवारीय चर्चामंच ||

    charchamanch.blogspot.com

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