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Thursday, April 19, 2012

पत्थर बना दिया

छू के फूलों ने मुझे पत्थर बना दिया,
जिंदगी को मौत से बत्तर बना दिया,
खाके ठोकर जो गिरा, तो कलियों ने,
जख्मों का तन पे बिस्तर बना दिया,
दबाकर जालिम ने मुझे दर्द के नीचे,
गम के कपड़ों का अस्तर बना दिया,
शुरू में पूंछा था की प्यार में क्या मिलता है,
मुझे ही मेरे सवालों का उत्तर बना दिया,

1 comment:

  1. और आपके इस कविता ने मुझे निरुत्तर बना दिया...बहुत अच्चा ..शब्दों का ताल मेल अच्छा लगा...

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