वाह-वाही मिली थोड़ी मगरूर हो गया,
मुझसे नशे में आज एक कसूर हो गया,
उसने उठा के पत्थर धीरे से चोट मारी,
मिटटी से बना था गिर के चूर हो गया,
अब मेरे दोस्त मुझको पहचानते नहीं,
जख्मों को भरते-भरते मजदूर हो गया,
थी कैद करके रखी आँखों में तेरी सूरत,
मुझसे नशे में आज एक कसूर हो गया,
उसने उठा के पत्थर धीरे से चोट मारी,
मिटटी से बना था गिर के चूर हो गया,
अब मेरे दोस्त मुझको पहचानते नहीं,
जख्मों को भरते-भरते मजदूर हो गया,
थी कैद करके रखी आँखों में तेरी सूरत,
जैसे उठाई पलकें तू बहुत दूर हो गया...
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