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Sunday, June 3, 2012

कुछ बातें दिल से

बंद हुआ रोशनी का मेरे घर आना-जाना, 
बनाया है जबसे खुद का अंधेरों में ठिकाना,
कैसे बताऊँ, कितना मुस्किल है दोस्तों,
खुद को रात भर सुलाना रात भर जगाना.....

खंज़र न तीर न तलवार से मरे,
नज़रों की तेज़ हम धार से मरे,
जैसे ही प्यार का दरवाजा खटखटाया,
हम प्यार की गली में बड़े प्यार से मरे,
न जख्म को मुझमे न घाव कोई है,
मालूम न हुआ किस औज़ार से मरे.



रात बनके करवट मेरा जिस्म तोड़ती है,
किसी के अनजबी ख्यालों से जोड़ती है,
सुबह जब घूँघट ओडती है रौशनी का,
मुझे तेरी यादों की राह में तनहा छोड़ती है....


3 comments:

  1. वाह ! कितनी सरलता से कितने गूढ़ भावों को लिखा है आपने ।
    बधाई !
    फुर्सत मिले तो आदत मुस्कुराने की पर ज़रूर आईये

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  2. मुझे पसंद आई आपकी ये कविता. लिखते रहिये.

    विकल्प
    whynotvikalp.blogspot.in

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  3. sundar rachna arun ji

    http://shashikekavita.blogspot.com/

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