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Friday, June 29, 2012

पराया हुआ है अपना और अपना गैर है

पैमाना नज़रों का छलकने में देर है,
यहाँ रात और वहाँ हो गयी सबेर है,
 
आँखों में नींद कबसे बैठी है मुहं बनाये,
सपनो से हो गयी जबसे इसकी बेर है,
दीवाने बढ रहे हैं हर रोज़ नए - नए,
ऐसे में नहीं अब, पुरानो की खैर है,
रिश्तों की अहमियत बदली है इस तरह,
पराया हुआ है अपना और अपना गैर है.....

2 comments:

  1. बढ़िया प्रस्तुति |
    आभार आपका ||

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  2. Sir धन्यवाद मेहरबानी

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