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Thursday, June 28, 2012

कौवे की तरह कावँ-२ करते हैं

पल में धूप पल में छावँ करते हैं,
खेला यूँ ही ये लाखों दावँ करते हैं,
बादल हैं या फिर कोई गिरगिट ,
घेर के, छोड़ जाया गावँ करते हैं,
दिखाते हैं रोब गडगडा के बहुत,
फिर कौवे की तरह कावँ-२ करते हैं,
भागने की आदत पड़ गयी है ऐसी,
एक जगह रखा नहीं पावँ करते हैं........

7 comments:

  1. बढ़िया प्रस्तुति अरुण भाई ||
    दो टुकड़े सटा रहा हूँ -
    सादर -

    खेले नेता गाँव में, धूप छाँव का खेल |
    बैजू कद्दू भेजता, तेली पेट्रोल तेल |
    बैंगन लुढ़क गया ||
    परती की धरती पड़ी, अपना नाम चढ़ाय |
    बेचे कोटेदार को, लाखों टका कमाय |
    बैजू भड़क गया ||

    .

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  2. वाह SIR वाह अनोखी प्रस्तुति .....

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  3. बहुत अच्छी प्रस्तुति!

    इस प्रविष्टी की चर्चा शुक्रवारीय के चर्चा मंच पर भी होगी!

    सूचनार्थ!

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  4. पढके रचना आपकी हमरा मन हर्षाए ....बहुत बढ़िया रचना है अरुण जी .

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  5. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति

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  6. बहुत बढ़िया लिख रहें हैं अरुण जी आप .....
    वीरुभाई .
    शुक्रवार, 29 जून 2012
    ज्यादा देर आन लाइन रहना माने टेक्नो ब्रेन बर्न आउट
    http://veerubhai1947.blogspot.com/
    वीरुभाई ४३.३०९ ,सिल्वर वुड ड्राइव ,कैंटन ,मिशिगन ,४८,१८८ ,यू एस ए .

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