पल में धूप पल में छावँ करते हैं,
एक जगह रखा नहीं पावँ करते हैं........
खेला यूँ ही ये लाखों दावँ करते हैं,
बादल हैं या फिर कोई गिरगिट ,
घेर के, छोड़ जाया गावँ करते हैं,
दिखाते हैं रोब गडगडा के बहुत,
फिर कौवे की तरह कावँ-२ करते हैं,
भागने की आदत पड़ गयी है ऐसी,एक जगह रखा नहीं पावँ करते हैं........
बढ़िया प्रस्तुति अरुण भाई ||
ReplyDeleteदो टुकड़े सटा रहा हूँ -
सादर -
खेले नेता गाँव में, धूप छाँव का खेल |
बैजू कद्दू भेजता, तेली पेट्रोल तेल |
बैंगन लुढ़क गया ||
परती की धरती पड़ी, अपना नाम चढ़ाय |
बेचे कोटेदार को, लाखों टका कमाय |
बैजू भड़क गया ||
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वाह SIR वाह अनोखी प्रस्तुति .....
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteइस प्रविष्टी की चर्चा शुक्रवारीय के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
पढके रचना आपकी हमरा मन हर्षाए ....बहुत बढ़िया रचना है अरुण जी .
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteशुक्रिया सदा जी
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिख रहें हैं अरुण जी आप .....
ReplyDeleteवीरुभाई .
शुक्रवार, 29 जून 2012
ज्यादा देर आन लाइन रहना माने टेक्नो ब्रेन बर्न आउट
http://veerubhai1947.blogspot.com/
वीरुभाई ४३.३०९ ,सिल्वर वुड ड्राइव ,कैंटन ,मिशिगन ,४८,१८८ ,यू एस ए .