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Wednesday, June 27, 2012

बदल राजा आओ बारिश ले आओ

सूखे हुए पौधों में अब जान फूंक जाओ,
घनघोर घटा लेकर मेरे भी शहर आओ,
सूर्यदेव काम अपना बखूबी निभा रहे हैं,
साथ - २ धुप के शोले भी गिरा रहे हैं, 
अब आपकी है बारी यूँ पीठ न दिखाओ,
खुले आसमाँ को भुजाओं में जकड जाओ,
सुखी हुई जमीं है, १०० फुट घंसी नमी है,
सुबह नहीं सुहानी, और शाम में कमी है,
सागर की जरुरत गागर न गिराओ,
मोटी - २ बूंदों से तालाब भर जाओ........

बदल राजा आओ बारिश ले आओ
बड़ी देर हो गयी अब तो चले आओ..........

10 comments:

  1. ये बादल जरूर आयंगे ... बारिश भी लेंगे ...

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  2. अब तो इनको आ ही जाना चाहिए...बहुत हो गया इंतज़ार...

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  3. सार्थक गुहार, हमारा सुर भी इसमें मिला लीजिए!

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  4. कैलाश SIR बिलकुल ठीक कहा आपने. शास्त्री SIR क्यूँ नहीं बिलकुल. बहरहाल बहुत -२ शुक्रिया .....

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  5. बहुत हो गया इंतज़ार...

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  6. बिलकुल अब तो आ जाना ही चाहिए.

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  7. वाह ... बेहतरीन भाव लिए अच्‍छी प्रस्‍तुति।

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  8. हम लोगों की कलम जरूर एक दिन घन घट में सुराख कर देगी ...बहुत सुन्दर लिखा है आपने

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  9. बिलकुल ठीक कहा आपने!!!!!

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