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Friday, July 6, 2012

ख्वाब आँखों के

ख्वाब आँखों के कोई भी मुकम्मल हो नहीं पाए,
खाकर ठोकर यूँ गिरे फिर उठकर चल नहीं पाए,
खिलाफत कर नहीं पाए बंधे रिश्ते कुछ ऐसे थे,
सवालों के किसी मुद्दे का कोई हल नहीं पाए,
बड़े उलटे सीधे थे, गढ़े रिवाज तेरे शहर के,
लाख कोशिशों के बावजूद हम उनमे ढल नहीं पाए,
थरथराते होंठो ने जब, शिकायत दिल से की,
बहते अश्कों को हांथो से हम फिर मल नहीं  पाए,
लगी जब आग सीने में, तेरी यादों की वजह से,
हम जल गए,  किस्से जल नहीं पाए......

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