आइये आपका स्वागत है

Saturday, November 3, 2012

उसकी दुश्मनी, उसकी रिश्तेदारी,

कैसी आई समस्या, पाली कैसी बीमारी,
उसकी मुझसे दुश्मनी, उसकी दिल से रिश्तेदारी,

भीगी-भीगी दास्ताँ, कहती आँखें हैं जागी-जागी,
जिन्दा आफत धडकनों में, साँसों में मारामारी,

जर्जर मेरी काफिया, आवारा पागल मैं कातिब,
पेंचीदा मेरी ग़ज़ल है, आदत मेरी सरकारी,

दुर्भाग्य पूर्ण दर्द है, फंसी जिसमे है नारी,
मारी गुड़िया पेट में, तो कैसे गूंजे किलकारी,

अनजाने गम की खलिश, मुझमे सदियों से है कायम,
गमदीदा मेरी मुहब्बत, तेरी फितरत से हारी.


कातिब - लेखक

13 comments:

  1. 2 और 3 नम्बर के शेर तो पढ़ते नही थकता मैं ...

    आज एक बार फिर से कह रहा हूँ की लिखते रहिएगा आपकी पोस्ट पढ़ने में बड़ा मज़ा आता है।

    :)

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-2 शुक्रिया मित्र बस इसी तरह के सहयोग और स्नेह की आवश्यकता रहेगी।

      Delete
  2. बहुत खूब,,,अरुनजी,,,बस इसी लिखते रहिये, सस्नेह शुभकामनाये,,,

    RECENT POST : समय की पुकार है,

    ReplyDelete
    Replies
    1. तहे दिल से शुक्रिया धीरेन्द्र सर

      Delete
  3. बहुत बेहतरीन
    भावपूर्ण गजल....

    ReplyDelete
  4. तहे दिल से आभार सर

    ReplyDelete

  5. दुर्भाग्य पूर्ण दर्द है, फंसी जिसमे है नारी,
    मारी गुड़िया पेट में, तो कैसे गूंजे किलका

    खूब उभारा है विरोधाभास को ,तीव्र एहसास को इस गजल में आपने .बहुत सुन्दर कही है पूरी गजल .

    ReplyDelete
    Replies
    1. तहे दिल से धन्यवाद वीरेंद्र सर

      Delete
  6. बहुत बेहतरीन

    ReplyDelete
  7. भावपूर्ण गज़ल..बहुत सुन्दर!

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-2 शुक्रिया शालिनी जी.

      Delete
  8. कैसी आई समस्या, पाली कैसी बीमारी,
    उसकी मुझसे दुश्मनी, उसकी दिल से रिश्तेदारी,

    ....बहुत खूब! बेहतरीन गज़ल...

    ReplyDelete

आइये आपका स्वागत है, इतनी दूर आये हैं तो टिप्पणी करके जाइए, लिखने का हौंसला बना रहेगा. सादर