कैसी आई समस्या, पाली कैसी बीमारी,
उसकी मुझसे दुश्मनी, उसकी दिल से रिश्तेदारी,
भीगी-भीगी दास्ताँ, कहती आँखें हैं जागी-जागी,
जिन्दा आफत धडकनों में, साँसों में मारामारी,
जर्जर मेरी काफिया, आवारा पागल मैं कातिब,
पेंचीदा मेरी ग़ज़ल है, आदत मेरी सरकारी,
दुर्भाग्य पूर्ण दर्द है, फंसी जिसमे है नारी,
मारी गुड़िया पेट में, तो कैसे गूंजे किलकारी,
अनजाने गम की खलिश, मुझमे सदियों से है कायम,
गमदीदा मेरी मुहब्बत, तेरी फितरत से हारी.
कातिब - लेखक
कातिब - लेखक
2 और 3 नम्बर के शेर तो पढ़ते नही थकता मैं ...
ReplyDeleteआज एक बार फिर से कह रहा हूँ की लिखते रहिएगा आपकी पोस्ट पढ़ने में बड़ा मज़ा आता है।
:)
बहुत-2 शुक्रिया मित्र बस इसी तरह के सहयोग और स्नेह की आवश्यकता रहेगी।
Deleteबहुत खूब,,,अरुनजी,,,बस इसी लिखते रहिये, सस्नेह शुभकामनाये,,,
ReplyDeleteRECENT POST : समय की पुकार है,
तहे दिल से शुक्रिया धीरेन्द्र सर
Deleteबहुत बेहतरीन
ReplyDeleteभावपूर्ण गजल....
तहे दिल से आभार सर
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ReplyDeleteदुर्भाग्य पूर्ण दर्द है, फंसी जिसमे है नारी,
मारी गुड़िया पेट में, तो कैसे गूंजे किलका
खूब उभारा है विरोधाभास को ,तीव्र एहसास को इस गजल में आपने .बहुत सुन्दर कही है पूरी गजल .
तहे दिल से धन्यवाद वीरेंद्र सर
Deleteबहुत बेहतरीन
ReplyDeleteभावपूर्ण गज़ल..बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteबहुत-2 शुक्रिया शालिनी जी.
Deleteकैसी आई समस्या, पाली कैसी बीमारी,
ReplyDeleteउसकी मुझसे दुश्मनी, उसकी दिल से रिश्तेदारी,
....बहुत खूब! बेहतरीन गज़ल...
धन्यवाद कैलाश सर
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