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Sunday, August 11, 2013

सावन

सजी धजी हरी भरी वसुंधरा नवीन सी,
फुहार मेघ से झरी सफ़ेद है महीन सी,

नया नया स्वरुप है अनूप रंग रूप है,
बयार प्रेम की बहे खिली मलंग धूप है,

हवा सुगंध ले उड़े यहाँ वहाँ गुलाब की,
धरा विभोर हो उठी, मिटी क्षुधा चिनाब की

रुको जरा कहाँ चले दिखा मुझे कठोरता
हजार बार चाँद को चकोर है पुकारता

विदेश में बसे पिया, सुने नहीं निवेदना
अजीब मर्ज प्रेम का, अथाह दर्द वेदना

18 comments:

  1. Sawan ko shabdon me gunth diya...khubsurat bhav....

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  2. सावन की ठंडी फुहार सी शीतलता देती सुन्दर कविता .. बहुत सुन्दर

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  3. रचना के दवारा सावन का बहुत सुंदर वर्णन ,,,

    RECENT POST : जिन्दगी.

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  4. छोटा सा प्रभाव शाली गीत !

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज सोमवार (12-08-2013) को गुज़ारिश हरियाली तीज की : चर्चा मंच 1335....में "मयंक का कोना" पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  6. सजी धजी हरी भरी वसुंधरा नवीन सी,
    फुहार मेघ से झरी सफ़ेद है महीन सी,

    नया नया स्वरुप है अनूप रंग रूप है,
    बयार प्रेम की बहे खिली मलंग धूप है,

    रोचक गीत

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  7. रोचक प्रस्तुति

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  8. बहुत सुन्दर सावन वर्णन,भावनात्मक अभिव्यक्ति.

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  9. बहुत उम्दा भाव

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  10. बहुत बढ़िया अरुण जी .... बधाई !

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  11. सावन बहता है शब्दों में।

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  12. संक्षिप्त और सुन्दर रहा ब्लॉग प्रसारण। शुक्रिया हमारे सेतु को बिठाने के लिए।

    वाह भाषा का नियाग्रा प्रपाती प्रवाह सहज इन पंक्तियों की और ले गया -

    हिमाद्रि तुंग श्रृंग से ,प्रबुद्ध शुद्ध भारती ,

    स्वयं प्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती। ......

    अति सुन्दर प्रस्तुति है। आभार हमें निरंतर आदर पूर्वक ब्लॉग प्रसारण में बिठाने के लिए।

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  13. लाजवाब अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...

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  14. शब्द शब्द सावन में भीगा
    सुन्दर!

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  15. बहुत सुन्दर वर्णन..
    अति सुन्दर रचना...
    :-)

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