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Sunday, September 1, 2013

संगमरमर सा बदन हाय भुलाये न बने

ग़ज़ल
बह्र: रमल मुसम्मन् मख्बून मक्तुअ

गम छुपाये न बने जख्म दिखाये न बने,
आह जब पीर बढ़े वक़्त बिताये न बने,

रेशमी जुल्फ घनी, नैन भरे काली घटा,
संगमरमर सा बदन हाय भुलाये न बने,

शबनमी होंठ गुलाबों से अधिक कोमल हैं,
सेतु तारीफ का मुश्किल है बनाये न बने,

रातरानी सी जो मुस्कान खिली होंठों पर,
हुस्न कातिल ये तेरा जान बचाये न बने

मौत जिद पे है अड़ी साथ लेके जाने को,
क्या बने बात जहाँ बात बनाये न बने...

15 comments:

  1. रेशमी जुल्फ घनी, नैन भरे काली घटा,
    संगमरमर सा बदन हाय भुलाये न बने
    प्रेम रस से सराबोर बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुती,बार बार पढने को जी चाहता है।

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  2. रातरानी सी जो मुस्कान खिली होंठों पर,
    हुस्न कातिल ये तेरा जान बचाये न बने


    वाह बहुत सुंदर ,

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  3. रेशमी जुल्फ घनी, नैन भरे काली घटा,
    संगमरमर सा बदन हाय भुलाये न बने,...

    होता है जब इश्क परवान बन के चढ़ता है ...
    लावाब गज़ल है ...

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  4. खुबसूरत गजल
    अरुण

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  5. बेहतरीन ग़ज़ल भाई जी

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  6. कुछ ले लेते
    :)
    बहुत सुंदर !

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  7. सुंदर प्रस्तुति।।।

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  8. bhai Husn katil hai jan bachaye na bache ......gajal ke hr sher lajbab ...badhai apko

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  9. Hota hau bandhu ishk me aisa hee hota hai . Behatareen gazal.

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  10. रेशमी जुल्फ घनी, नैन भरे काली घटा,
    संगमरमर सा बदन हाय भुलाये न बने,...


    ......गज़ल है !!

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  11. रेशमी जुल्फ घनी, नैन भरे काली घटा,
    संगमरमर सा बदन हाय भुलाये न बने

    .....बेहतरीन ग़ज़ल

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