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Friday, August 22, 2014

एक तुम्हीं केवल जीवन में

मिट्टी से निर्मित इस तन में,
एक तुम्हीं केवल जीवन में,

अंतस में प्रिय विद्यमान तुम,
तुम ही साँसों में धड़कन में,

अधरों पर तुम मुखर रूप से,
अक्षर अक्षर संबोधन में,

सुखद मिलन की स्मृतियों में,
दुखद विरह की इस उलझन में,

मधुर क्षणों में तुम्हीं उपस्थित,
तुम्हीं वेदना की ऐठन में,

प्रखर प्रेम में पूर्ण तरह हो,
तुम हर छोटी सी अनबन में,

मानसपटल की स्थिररता में,
और तुम्हीं तुम व्याकुल मन में,

तुम्हीं कल्पना में भावों में,
तुम्हीं सम्मिलित हो लेखन में....

12 comments:

  1. बहुत ही भावपूर्ण रचना !!

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (23-08-2014) को "चालें ये सियासत चलती है" (चर्चा मंच 1714) पर भी होगी।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. बहुत सुन्दर और भावुक गजल
    उत्कृष्ट प्रस्तुति
    सादर ----

    आग्रह है
    हम बेमतलब क्यों डर रहें हैं ----

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  4. बहुत अच्छी प्रेम कविता।
    मनीषा जैन

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  5. बहुत अच्छी प्रेम कविता।
    मनीषा जैन

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  6. सुखद मिलन की स्मृतियों में,
    दुखद विरह की इस उलझन में,
    ...वाह...बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति...

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  7. बहुत सुन्दर और भावुक गजल
    उत्कृष्ट प्रस्तुति

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