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Sunday, March 11, 2012

हिसाब चाहती है.

बे-इन्तहा मोहोब्बत का हिसाब चाहती है. 
वो दिल नहीं जान का ख़िताब चाहती है.
अच्छा लगता नहीं उसे मुस्कुरा के बोलना, 
वो तो बस रोते-रोते ही जवाब चाहती है.
वो इसीलिए आती है सपने में हर रोज, 
क्यूंकि वो हर रात मेरी बस ख़राब चाहती है.
दो - चार अश्को की जरुरत नहीं उसे , 
वो बरसते आंशुओं का सैलाब चाहती है.

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