जिस्म पर दहकते हुए शोले लुटा गया,
जाने कहाँ से इतनी हिम्मत जुटा गया,
वो कहती रही की मैं मर जाऊँगी ,
मैं कदम ये भी एक दिन उठा गया....
यादों के पल जब भी दस्तक देते हैं,
अश्क झुका अपना मस्तक देते हैं,
जगा देते हैं सोये हुए ख्यालों को,
गुजरे लम्हों की पुस्तक देते हैं...
जाने कहाँ से इतनी हिम्मत जुटा गया,
वो कहती रही की मैं मर जाऊँगी ,
मैं कदम ये भी एक दिन उठा गया....
यादों के पल जब भी दस्तक देते हैं,
अश्क झुका अपना मस्तक देते हैं,
जगा देते हैं सोये हुए ख्यालों को,
गुजरे लम्हों की पुस्तक देते हैं...
सर्वप्रथम आपको प्रणाम.बहुत बहुत धन्यवाद आपका SIR ये आपका पहला कमेन्ट है मेरे ब्लॉग पर. इस कमेन्ट का बहुत बेशब्री से इंतज़ार था. आज मैं धन्य हो गया.
ReplyDeleteAchhi prastuti
ReplyDeleteAchhi prastuti
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव अभिव्यक्ति...
ReplyDelete:-)
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बेहतरीन रचना
दंतैल हाथी से मुड़भेड़
सरगुजा के वनों की रोमांचक कथा
♥ आपके ब्लॉग़ की चर्चा ब्लॉग4वार्ता पर ! ♥
♥ पढिए पेसल फ़ुरसती वार्ता,"ये तो बड़ा टोईंग है !!" ♥
♥सप्ताहांत की शुभकामनाएं♥
ब्लॉ.ललित शर्मा
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