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Saturday, June 23, 2012

प्यार क्या - क्या करता है

मैं मीठे-मीठे शब्दों का खुला व्यापार करता हूँ.
यही हरकत है जो मैं, दिन में सौ बार करता हूँ,
खुले दिल का परिंदा हूँ, कई जन्मों से जिन्दा हूँ,
मैं घायल हो चुके दिल पे, यादों की वार करता हूँ,
कभी जीने की हूँ मजा , कभी खौफनाक इक सजा,
मैं जैसे चाहूँ,  जिसको वैसे ही, लाचार करता हूँ,
मैं नीदों को चुरा जाऊं , हो जब-जब बुरा जाऊं,
मुश्किलों से बने लाखों, रखे औज़ार करता हूँ,
दिलों में भरता हूँ दूरी, बड़ी शातिर हूँ मज़बूरी,
सुकून और चैन के सारे, बंद बाज़ार करता हूँ......

7 comments:

  1. वाह जी वाह , बहुत खूब सरल भी सुंदर भी । शुभकामनाएं आपको

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  2. बहुत सुन्दर रचना सरल शब्दों में

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  3. सुन्दर और स्पष्ट भाव...

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  4. बहुत -२ शुक्रिया मेहरबानी

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  5. बहुत बढ़िया रचना अभिव्यक्ति ...

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