आदमी को कर रहा है, तंग आदमी,
सभ्यता सीखा गया बे-ढंग आदमी,
कोशिशें कर-2 हुआ है, कामयाब अब,
आसमां में भर रहा है, रंग आदमी,
देख के लो हो गयीं, हैरान अंखियाँ,
ओढ़ बैठा है, बुरा फिर अंग आदमी,
सोंच के ना काम कोई आज तक किया,
जी रहा इन्हीं आदतों के, संग आदमी,
दूसरों के दुःख को हरदिन, बढाता था,
हाल अपना जान अब है, दंग आदमी............
अंग अंग से हो गया है भंग आदमी |
ReplyDeleteखुद से ही लड़ रहा है इक जंग आदमी ||
बहुत खूब ... आदमी की रंगत को पहचाना है आपने ... जिया है इन शेरों में ...
ReplyDeleteआदरणीय रविकर जी एवं दिगंबर जी बहुत-बहुत शुक्रिया.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया अरुण जी
ReplyDeleteअनु
आदरणीय रविकर जी दिगंबर जी एवं आदरणीया अनु जी, स्नेह के लिए तहे दिल से अभिनन्दन.....
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