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Sunday, July 29, 2012

आज भी अनजान है

छीन बैठा इश्क जिसका सांस दिल से जान है,
मौत से मेरी वही बस आज भी अनजान है।

जिंदगी भर भागता था मौत के अंजाम से,
पर रहा क़दमों तले हर रोज़ ही शमशान है।

मान हो सम्मान, आदर भाव की हो भावना,
"यह हमारे वक़्त की सबसे सही पहचान है"

छोड़ बेशक से गयी माँ तू मुझे संसार में,
आज भी माँ याद तेरा रूप ही भगवान है।

ताकती मेरी निगाहें राह जिस इंसान की,
लौट कर आया नहीं वो आ गया तूफ़ान है।

11 comments:

  1. शुक्रिया शिवनाथ जी .......

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  2. दिल को छूती बेहतरीन प्रस्तुति....

    RECENT POST,,,इन्तजार,,,

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  3. आदरणीय धीरेन्द्र जी धन्यवाद

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  4. छोड़ बेशक से गयी माँ तू मुझे संसार में,
    आज भी माँ याद तेरा रूप ही भगवान है ..

    अंदर तक छूता है ये शेर ... लाजवाब रचना है पूरी ...

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  5. Replies
    1. आदरणीया आपने सराहा है बहुत बड़ी बात है मेरे लिए शुक्रिया

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  6. ... लाजवाब रचना अरुन जी

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    1. बहुत-२ शुक्रिया संजय भाई तहे दिल से धन्यवाद

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