अजनबी पर ना भरोसा कर अभी सुनसान है।
लूट कर सब चल बसेगा साथ जो सामान है।।
पूंछता बेटा नहीं अब हाल अपने बाप का।
यह हमारे वक़्त की सबसे सही पहचान है।।
शोर गलियों में मचा है, वो बनी दुल्हन मिरी।
प्यार मेरा आज देखो चढ़ रहा परवान है।।
इश्क से ये दिल हमेशा यार क्यूँ डरता रहा।
इश्क तुमको पा लगा मुझको बड़ा आसान है।।
ताड़ते इज्ज़त घरों की फिर दुशाशन रूप में।
खाल ओढ़े मानवों का आ गया शैतान है।।
पूछता बेटा नहीं अब हाल अपने बाप का
ReplyDeleteयह हमारे वक़्त की सबसे सही पहचान है ....
बहुत खूब....!!
बहुत-२ शुक्रिया इस स्नेह और आशीर्वाद के लिए............
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार को ३१/७/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी आपका स्वागत है
ReplyDeleteबहुत-२ शुक्रिया आदरणीया
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteयह तोसही है की कुछ लोग दिखाते मानव है.
ReplyDeleteपर प्रवृत्ति उनकी शैतानी है..
यथार्थ बयां करती रचना...
:-)
धन्यवाद रीना जी
Deleteपूछता बेटा नहीं अब हाल अपने बाप का
ReplyDeleteयह हमारे वक़्त की सबसे सही पहचान है ....
बहुत बेहतरीन,,,,,,,,,,
RECENT POST,,,इन्तजार,,,
शुक्रिया सर
Deleteदुखद .
ReplyDeleteत्रासद.
पूंछता बेटा नहीं अब हाल अपने बाप का।
ReplyDeleteयह हमारे वक़्त की सबसे सही पहचान है ..
सच कहा है ... आज की तो पहचान यही है .. आज को लिखा है ...
शुक्रिया आदरणीय दिगम्बर जी
Deleteपूंछता बेटा नहीं अब हाल अपने बाप का।
ReplyDeleteयह हमारे वक़्त की सबसे सही पहचान है।।
...बहुत खूब! एक कटु सत्य...
आदरणीय कैलाश सर आपकी टिप्पणियों से मुझे बल मिलता है , शुक्रिया
Deleteसटीक पंक्तियाँ ...अर्थपूर्ण
ReplyDeleteपूछता बेटा नहीं अब हाल अपने बाप का
ReplyDeleteयह हमारे वक़्त की सबसे सही पहचान है ....
अच्छा कटाक्ष....
आदरणीया डॉ. साहिबा बहुत-२ शुक्रिया
Deleteवर्तमान परिस्थितियों का सटीक चित्रण... सार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteप्रभावशाली ...
ReplyDeleteबहुत खुब. बेहतरीन गज़ल.
ReplyDeleteबहुत खुब.
ReplyDeleteबेहतरीन गज़ल के लिए बधाई.
ReplyDeleteनिगम साहब आपका आशीर्वाद यूँ ही बना रहे.
Deleteबहुत खुब. बेहतरीन
ReplyDeleteबहुत-२ धन्यवाद संजय जी
Deleteआज के इंसान और माहौल का सही चित्रण किया है अरुण...बहुत खूब!
ReplyDeleteबहुत-२ शुक्रिया शालिनी जी
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