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Thursday, July 5, 2012

बिखरे हुए पन्ने

बिखरे हुए पन्ने किताबों के आगे,
जिंदगी रुक गयी हिसाबों के आगे,
सवालों के पीछे सवालों के तांते,
उलझी जवानी जवाबों के आगे,
जीने में जिद्दोजेहद हो गयी है,
सुधरे हुए हारे खराबों के आगे,
कोई चोट देकर कोई चोट खाकर,
सब लेटे पड़े हैं शराबों के आगे,
आँखों में सजाये जिसे बैठे सभी हैं,
मंजिल नहीं है उन ख्वाबों के आगे.......

6 comments:

  1. बहुत बहुत शुक्रिया SIR

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  2. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
    :-)

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  3. शुक्रिया माधुरी जी , शुक्रिया रीना जी

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  4. सुंदर शब्द संयोजन...

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  5. शुक्रिया पल्लवी जी

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