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Sunday, August 19, 2012

यादों का मखमली गम

यादों का मखमली गम ओढ़, सो नहीं पाता,
सब जाना चाहता हूँ भूल, हो नहीं पाता,

आया आराम ना मुझको दुआ, दवा भायी,
आँखों में झलकता है अश्क, रो नहीं पाता,

मैं प्यासा इक समंदर हूँ, कई महीनों से,
मुझको दीवानगी है याद, खो नहीं पाता,

पागल हो, भूल बैठा रात और दिन सारे,
पल दो पल का सुकूं हो चैन ढो नहीं पाता,

जिसको मैं ढूंढता हूँ हर घडी उदासी में,
करके बेताब मिल हर रोज़, वो नहीं पाता......

8 comments:

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    1. आदरणीय धीरेन्द्र जी स्नेह के लिए आभार

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  2. बहुत बढ़िया गजल...
    पर हर समय मिलना भी तो संभव नहीं..
    :-)

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    1. रीना जी तहे दिल से शुक्रिया बिलकुल हर समय मिलना मुमकिन नहीं होता

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  3. ईद मुबारक !
    आप सभी को भाईचारे के त्यौहार की हार्दिक शुभकामनाएँ!
    --
    इस मुबारक मौके पर आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (20-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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    1. आदरणीय शास्त्री सर आपको भी ईद मुबारक, तहे दिल से शुक्रिया मेरी रचना चर्चामंच पर लगाने के लिए

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  4. सच है जिसकी तलाश रहती है जीवन की उदासी में ... वो कभी नहीं मिलता .. जीवन की रीत है ये ...

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    1. बिलकुल सच कहा है आपने दिगम्बर जी

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