बेघर हूँ सब कुछ, लुटाया हुआ हूँ,
अपने ही दिल का, सताया हुआ हूँ,
अपने ही दिल का, सताया हुआ हूँ,
घर से मेरे रौशनी, खो गई है,
जलता दीपक, बुझाया हुआ हूँ,
बूंदों की मुझको, जरुरत नहीं है,
अश्कों का सागर, उठाया हुआ हूँ,
अश्कों का सागर, उठाया हुआ हूँ,
काटों से मुझको, मुहब्बत हुई है,
फूलों को दुश्मन, बनाया हुआ हूँ,
फूलों को दुश्मन, बनाया हुआ हूँ,
अब तो तेरी, दिल्लगी जिंदगी है,
यादों में जी भर, नहाया हुआ हूँ,
यादों में जी भर, नहाया हुआ हूँ,
चाहा है तुझको, हदों की हदों तक,
रब से भी आगे, बिठाया हुआ हूँ,
रब से भी आगे, बिठाया हुआ हूँ,
तेरे वास्ते है दुआ, भी दवा भी,
मैं गम का मरहम, लगाया हुआ हूँ.
मैं गम का मरहम, लगाया हुआ हूँ.
ReplyDeleteवाह ,,, बहुत खूब,अरुण जी,,,
आपकी रचनाये मन को आनन्दित करती है,,,
RECENT POST - मेरे सपनो का भारत
आदरणीय धीरेन्द्र सर जब आप जैसे महान लेखक का इतना आशीर्वाद मिलता है तो मैं धन्य हो जाता हूँ.
Deleteखूब लिखा अरुण भाई
ReplyDeleteपर
इसे अकेले पढ़ने में आनन्द नहीं
सो ले जा रही हूँ
नई-पुरानी हलचल में
मिल-बैठ कर पढ़ेंगे सब
आप भी आइये न
इसी बुधवार को
नई-पुरानी हलचल में
सादर
यशोदा
प्रिय यशोदा दीदी आपकी सराहना सर आँखों पर, अपना स्नेह यूँ ही बनाए रखिये अनुज पर. नयी -पुरानी हलचल पर मेरी रचना को स्थान मिला, ये मेरा सौभाग्य है.
Deleteगम का मरहम ले लगा, अगर दगा यह जिस्म |
ReplyDeleteरब का पहरा ले बचा, किया वहम किस किस्म |
किया वहम किस किस्म, अश्क के सागर नागर |
शेरो में भर दिया, गजब का भाव बिरादर |
करता किन्तु सचेत, फैक्टरी उनकी चालू |
चालू गम निर्माण, रवैया बेहद टालू ||
आप कभी नहीं आते -
उत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।।
रविकर सर तहे दिल से शुक्रिया इतने स्नेह और आशीर्वाद के लिए
Deleteबहुत ही सही ... उत्कृष्ट लेखन के लिए आभार ।
ReplyDeleteसंजय भाई धन्यवाद इतने दिनों बाद आपकी टिप्पणियां मिली
Deleteआपकी इस उत्कृष्ट रचना की चर्चा कल मंगलवार ११/९/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका स्वागत है
ReplyDeleteआदरेया आपके द्वारा दिए गए इस स्नेह का सदा आभारी रहूँगा
Deleteबहुत खूब लिका है अरुण आपने ...ऐसे ही लिखते रहिए!
ReplyDeleteशालिनी जी आपने सराहा मेरा दिन बन गया शुक्रिया
Deletebahut badhiya , badhayi
ReplyDeleteअजय भाई आपकी बधाई स्वीकार है , धन्यवाद
Deleteबेघर हूँ सब कुछ, लुटाया हुआ हूँ,
ReplyDeleteअपने ही दिल का, सताया हुआ हूँ,
घर से मेरे रौशनी, खो गई है,
जलता दीपक, बुझाया हुआ हूँ,
बूंदों की मुझको, जरुरत नहीं है,
अश्कों का सागर, उठाया हुआ हूँ,
काटों से मुझको, मुहब्बत हुई है,
फूलों को दुश्मन, बनाया हुआ हूँ,
अब तो तेरी, दिल्लगी जिंदगी है,
यादों में जी भर, नहाया हुआ हूँ,
चाहा है तुझको, हदों की हदों तक,
रब से भी आगे, बिठाया हुआ हूँ,
तेरे वास्ते है दुआ, भी दवा भी,
मैं गम का मरहम, लगाया हुआ हूँ.
मेरा मौन भी है ये तेरी अमानत ,
मैं मोहन से मौन सिंह बनाया हुआ हूँ .क्या गजब लिखते भो यार राजनीति पे लिखो तो छा जाओ .
ram ram bhai
सोमवार, 10 सितम्बर 2012
आलमी हो गई है रहीमा शेख की तपेदिक व्यथा -कथा (आखिरी
आदरणीय वीरेन्द्र सर आपकी टिप्पणियों से और भी ज्यादा लिखने की प्रेरणा मिलती है
Deletebhai ji kahan hai hamaari tippaniyaan
ReplyDeleteक्षमा रविकर सर कल मंगलवार को किसी कारण वश ब्लॉग पर नहीं आ पाया, देरी के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ .
Deleteवाह ... बेहतरीन लिखा है
ReplyDeleteसदा जी यूँ ही अपना आशीर्वाद बनाये रखिये
Deleteवाह...बहुत सुंदर नज्म..
ReplyDeleteरश्मि जी वाह शब्द सुनकर ही मन प्रसन्न हो जाता है इसके लिए शुक्रिया
Deleteखूबसूरत गजल ।
ReplyDeleteआदरेया संगीता जी आपका आशीर्वाद मिलता मैं धन्य हो गया
Deleteबहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteशुक्रिया भ्राताश्री
Deleteबूंदों की मुझको, जरुरत नहीं है,
ReplyDeleteअश्कों का सागर, उठाया हुआ हूँ,...
ये अश्कों का सागर छलके नहीं ... नहीं तो क़यामत आ जायगी ...
अच्छी रचना है अरुण जी ...
सही कहा है सर आपने अश्कों का सागर गर छलका तो क़यामत आ जाएगी.
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