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Monday, September 10, 2012

अपने ही दिल का सताया हुआ हूँ

बेघर हूँ सब कुछ, लुटाया हुआ हूँ,
अपने ही दिल का, सताया हुआ हूँ,

घर से मेरे रौशनी, खो गई है,
जलता दीपक, बुझाया हुआ हूँ,
 
बूंदों की मुझको, जरुरत नहीं है,
अश्कों का सागर, उठाया हुआ हूँ,
 
काटों से मुझको, मुहब्बत हुई है,
फूलों को दुश्मन, बनाया हुआ हूँ,
 
अब तो तेरी, दिल्लगी जिंदगी है,
यादों में जी भर, नहाया हुआ हूँ,
 
चाहा है तुझको, हदों की हदों तक,
रब से भी आगे, बिठाया हुआ हूँ,
 
तेरे वास्ते है दुआ, भी दवा भी,
मैं गम का मरहम, लगाया हुआ हूँ.

28 comments:


  1. वाह ,,, बहुत खूब,अरुण जी,,,

    आपकी रचनाये मन को आनन्दित करती है,,,
    RECENT POST - मेरे सपनो का भारत

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    1. आदरणीय धीरेन्द्र सर जब आप जैसे महान लेखक का इतना आशीर्वाद मिलता है तो मैं धन्य हो जाता हूँ.

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  2. खूब लिखा अरुण भाई
    पर
    इसे अकेले पढ़ने में आनन्द नहीं
    सो ले जा रही हूँ
    नई-पुरानी हलचल में
    मिल-बैठ कर पढ़ेंगे सब
    आप भी आइये न
    इसी बुधवार को
    नई-पुरानी हलचल में
    सादर
    यशोदा

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    1. प्रिय यशोदा दीदी आपकी सराहना सर आँखों पर, अपना स्नेह यूँ ही बनाए रखिये अनुज पर. नयी -पुरानी हलचल पर मेरी रचना को स्थान मिला, ये मेरा सौभाग्य है.

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  3. गम का मरहम ले लगा, अगर दगा यह जिस्म |
    रब का पहरा ले बचा, किया वहम किस किस्म |
    किया वहम किस किस्म, अश्क के सागर नागर |
    शेरो में भर दिया, गजब का भाव बिरादर |
    करता किन्तु सचेत, फैक्टरी उनकी चालू |
    चालू गम निर्माण, रवैया बेहद टालू ||

    आप कभी नहीं आते -

    उत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।।

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    1. रविकर सर तहे दिल से शुक्रिया इतने स्नेह और आशीर्वाद के लिए

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  4. बहुत ही सही ... उत्‍कृष्‍ट लेखन के लिए आभार ।

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    1. संजय भाई धन्यवाद इतने दिनों बाद आपकी टिप्पणियां मिली

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  5. आपकी इस उत्कृष्ट रचना की चर्चा कल मंगलवार ११/९/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका स्वागत है

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    1. आदरेया आपके द्वारा दिए गए इस स्नेह का सदा आभारी रहूँगा

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  6. बहुत खूब लिका है अरुण आपने ...ऐसे ही लिखते रहिए!

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    1. शालिनी जी आपने सराहा मेरा दिन बन गया शुक्रिया

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  7. Replies
    1. अजय भाई आपकी बधाई स्वीकार है , धन्यवाद

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  8. बेघर हूँ सब कुछ, लुटाया हुआ हूँ,
    अपने ही दिल का, सताया हुआ हूँ,

    घर से मेरे रौशनी, खो गई है,
    जलता दीपक, बुझाया हुआ हूँ,

    बूंदों की मुझको, जरुरत नहीं है,
    अश्कों का सागर, उठाया हुआ हूँ,

    काटों से मुझको, मुहब्बत हुई है,
    फूलों को दुश्मन, बनाया हुआ हूँ,

    अब तो तेरी, दिल्लगी जिंदगी है,
    यादों में जी भर, नहाया हुआ हूँ,

    चाहा है तुझको, हदों की हदों तक,
    रब से भी आगे, बिठाया हुआ हूँ,

    तेरे वास्ते है दुआ, भी दवा भी,
    मैं गम का मरहम, लगाया हुआ हूँ.
    मेरा मौन भी है ये तेरी अमानत ,
    मैं मोहन से मौन सिंह बनाया हुआ हूँ .क्या गजब लिखते भो यार राजनीति पे लिखो तो छा जाओ .
    ram ram bhai
    सोमवार, 10 सितम्बर 2012
    आलमी हो गई है रहीमा शेख की तपेदिक व्यथा -कथा (आखिरी

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    1. आदरणीय वीरेन्द्र सर आपकी टिप्पणियों से और भी ज्यादा लिखने की प्रेरणा मिलती है

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  9. Replies
    1. क्षमा रविकर सर कल मंगलवार को किसी कारण वश ब्लॉग पर नहीं आ पाया, देरी के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ .

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  10. वाह ... बेहतरीन लिखा है

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    1. सदा जी यूँ ही अपना आशीर्वाद बनाये रखिये

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  11. वाह...बहुत सुंदर नज्‍म..

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    1. रश्मि जी वाह शब्द सुनकर ही मन प्रसन्न हो जाता है इसके लिए शुक्रिया

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  12. Replies
    1. आदरेया संगीता जी आपका आशीर्वाद मिलता मैं धन्य हो गया

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  13. बूंदों की मुझको, जरुरत नहीं है,
    अश्कों का सागर, उठाया हुआ हूँ,...

    ये अश्कों का सागर छलके नहीं ... नहीं तो क़यामत आ जायगी ...
    अच्छी रचना है अरुण जी ...

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    1. सही कहा है सर आपने अश्कों का सागर गर छलका तो क़यामत आ जाएगी.

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