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Monday, September 3, 2012

प्रेम की, गिनती अढ़ाई है

नहीं पूरी प्रेम की, गिनती अढ़ाई है,
तभी मुस्किल प्रीत की, इतनी पढ़ाई है,

न जाना कोई न समझा, दिल्लगी दिल की,
बड़ी टेढ़ी रीत, नम पथ की चढ़ाई है,

तले पलकों के रखा, तुझको छुपा मैंने,
पर्ते दिल पे चाँद सी, सूरत मिढ़ाई है, 
 
जले हैं शोले, लगी है आग सीने में,
दर्द की कीमत, दिलों ने ही बढ़ाई है,

चढ़ा जादू इश्क का, इस तरह कुछ मुझपे,
मुहब्बत के नाम की, दिल पे कढ़ाई है....

10 comments:

  1. इश्क का जादू चढ़ता, मच जाता है शोर
    ग़ालिब ने कहा सही, नही इश्क पर जोर,,,,

    RECENT POST-परिकल्पना सम्मान समारोह की झलकियाँ,

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  2. न जाना कोई न समझा, दिल्लगी दिल की,
    बड़ी टेढ़ी रीत, नम पथ की चढ़ाई है,..

    सच है दिल की प्रीत कोपी नहीं समझ पाता दिल के सिवा ... लाजवाब शेर ...

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    1. आदरणीय दिगम्बर सर सराहना के लिए तहे दिल से शुक्रिया

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  3. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 4/9/12 को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच http://charchamanch.blogspot.inपर की जायेगी|

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    1. आदरेया राजेश कुमारी जी, इस स्नेह के लिए हार्दिक आभार.

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  4. लाजवाब|
    "बड़ी टेढ़ी रीत, नम पथ की चढ़ाई है,.."

    "प्रेम की समझ ना किसी को आएगी ना आज तक आई है....

    सादर..

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  5. मुहब्बत के नाम की दिल पर कढ़ाई ...वाह
    बहुत खूब !

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    1. आदरेया वाणी की शुक्रिया

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