शीतल है बहुत आब,
जलता है आफ़ताब,
जलता है आफ़ताब,
बरसाए जब इताब,
भू का बढ़ जाए ताब,
चाहत का बद गिर्दाब,
बिखरेंगे टूट ख्वाब,
बिखरेंगे टूट ख्वाब,
काँटा है यूँ ख़राब,
नाजुक फंसा गुलाब,
नाजुक फंसा गुलाब,
मन में अल का जवाब,
ढ़ूढ़ो पाओ ख़िताब.
(शब्दों के अर्थ)
आब = पानी
आफ़ताब = सूर्य
इताब = क्रोध
ताब = ताप
बद = बुरा
गिर्दाब = भंवर
ढ़ूढ़ो पाओ ख़िताब.
(शब्दों के अर्थ)
आब = पानी
आफ़ताब = सूर्य
इताब = क्रोध
ताब = ताप
बद = बुरा
गिर्दाब = भंवर
अल = कला
बढ़िया है अरुण जी ।
ReplyDeleteशुभकामनायें ।।
आदरणीय रविकर सर तहे दिल से शुक्रिया आपसे एक गुजारिश है, मुझे अच्छा लगेगा अगर आप सिर्फ अरुन ही कहेंगे.
Deletebahut khoob arun jee
ReplyDeleteशुक्रिया सोनिया जी
Deleteशब्दों का समुचित प्रयोग किया है अरुण ...बहुत बढ़िया!
ReplyDeleteधन्यवाद शालिनी जी
Deleteक्या बात है!!!
ReplyDelete---
अपने ब्लॉग को ई-पुस्तक में बदलिए
शुक्रिया विनय भाई
Deleteबहुत सुंदर रचना...
ReplyDeleteबहुत-2 शुक्रिया संध्या जी
Deleteबहुत सुन्दर अरुण भाई.
ReplyDeleteशुक्रिया निहार रंजन भाई
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