दिन दूभर और रात भारी लगी,
जाने कैसी मुझे, बिमारी लगी,
आँखों का हाल, दिल समझता नहीं,
साँसों में आग, रोज जारी लगी,
पागल हैं धडकनें, इश्क में इस कदर,
अब अच्छी और, बेकरारी लगी,
मीलों तक दूरियां, दिलों में रही,
देती तकलीफ, याद खारी लगी,
बिखरी आबाद जिंदगी, इस तरह,
अत्र फूलों की लुटी, क्यारी लगी,
अत्र - सुगन्धित
बिखरी आबाद जिन्दगी,इस तरह
ReplyDeleteअत्र" फूलों की लुटी, क्यारी लगी।
वाह .. बेहद खुबसूरत ... :))
एक एक शेर बेहद सँवरा हुआ
मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत हैं ...
http://rohitasghorela.blogspot.in/2012/11/blog-post_6.html
बहुत-2 शुक्रिया रोहित भाई
Deleteदिन दूभर और रात भारी लगी है ।
ReplyDelete(अरुण शर्मा )
आज कल मैं सीखने की कोशिश में लगा हूँ गजल की आकर्षक विधा -
2 2 2 2 1 2 1 22 1 22
महबूबा की अजब तयारी लगी है ।
जब से देखा उसे हमारी लगी है ।।
करने आता तभी मुलाक़ात साला
उसकी बोली मुझे कटारी लगी है ।।
अरुण जी जरा बताना तो-
बहर ठीक है या कहीं सुधार की जरुरत है-
मुझे संकोच नहीं -
तुम भी मत करो -
बिंदास कहो -
सर आपका हर शेर लाजवाब है मुझसे कहीं बेहतर लिखा है क्या बात है.
Deleteआपका अंदाज निराला है,
कर रहा हर शेर उजाला है।
अरुण भाई -
Deleteसचमुच सीखने की कोशिश में लगा हूँ-
आपने इसे सही कहा-
आभार ||
सर सीख तो मैं रहा हूँ सच कहूँ तो आपसे दोहे की विद्या लेना चाहता हूँ जो मज़ा आपके दोहों में है वो और कहीं नहीं।
Deleteउत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।।
ReplyDeleteआज लिंक लिक्खाड़ पर
450 वीं
पोस्ट
सर लिंक लिक्खाड़ पर स्थान देने हेतु आभार। 450 वीं पोस्ट के लिए हार्दिक बधाई.
Deleteएक अदना सा करिश्मा है ये उसके इश्क का,
ReplyDeleteमर गया हूँ, और मरने का गुमा होता नही,,,,,,
RECENT POST:..........सागर
वाह सर क्या बात है अति उत्तम लाजवाब
Deleteप्रस्तुति बहुत प्यारी लगी... शुभकामनायें
ReplyDeleteतहे दिल से शुक्रिया संध्या जी
Deleteकम्वाख्त इश्क वो आतिश है ग़ालिब
ReplyDeleteकि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे..... ज़रा बच के रहिए जनाब
बहुत उम्दा लिखा है
वाह शालिनी जी बहुत खूब क्या बात है आप ग़ालिब साहब को लाये शुक्रिया.
Deleteइश्क की बीमारी का सही वर्णन....
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति....
:-)
शुक्रिया रीना जी
Deleteअच्छी लगी आपकी रचना
ReplyDeleteबहुत-2 शुक्रिया डॉ. साहिबा
Deleteवाह ... बहुत ही बढिया
ReplyDeleteबहुत-2 शुक्रिया सदा जी
Deleteकम्वाख्त इश्क
ReplyDeleteबिलकुल संजय भाई.
Deleteये क्या हाल बना रखा है अरुण !!!हाहाहा ये तो रही मजाक की बात बहुत अच्छा प्रयास हुआ है उम्दा ग़ज़ल लिखी है दाद कबूल करो
ReplyDeleteआदरणीया राजेश कुमारी जी आपकी दाद व आशीष तहे दिल से कुबूल है.
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ReplyDeleteबिखरी आबाद जिंदगी, इस तरह,
अत्र फूलों की लुटी, क्यारी लगी
बहुत सुन्दर है दोस्त बहुत बढ़िया लिख रहे हो .
बिखरी आबाद जिंदगी, इस तरह,
अत्र फूलों की लुटी, क्यारी लगी
इश्क पर जोर नहीं ,है ये वो आतिश ग़ालिब ,
के लगाए न लगे और बुझाए न बने .
तहे दिल से आभार वीरेंद्र सर.
Deleteआपकी रचना अच्छी लगी
ReplyDeleteबहुत-2 शुक्रिया चौहान साहब
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