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Sunday, December 16, 2012

लड़खड़ाते पांव मेरे - जबकि मैं पीता नहीं

याद में तेरी जिऊँ, मैं आज में जीता नहीं,
लड़खड़ाते पांव मेरे, जबकि मैं पीता नहीं,
 
नाज़ नखरे रख रखें हैं, आज भी संभाल के,
मैं नहीं इतिहास फिरभी, सार या गीता नहीं,
 
तोलना है तोल लो तुम, नापना है नाप लो,
प्यार मेरा है समंदर, यार दो बीता नहीं,
 
आह निकलेगी नहीं, तुम लाख चाहो भी सनम,
दर्द की आदत मुझे है, मैं जखम सीता नहीं,
 
चाहता हूँ भूलके सब, दो कदम आगे चलूँ,
और खुद तकदीर से मैं अबतलक जीता नहीं.

24 comments:

  1. आह निकलेगी नहीं, तुम लाख चाहो भी सनम,
    दर्द की आदत मुझे है, मैं जखम सीता नहीं,..

    वाह ... क्या बात है ... कमाल का शेर है अरुण जी ...

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  2. सबकुछ भूलकर कदम आगे बढ़ते रहें,
    जीतना ही है,हारना तुमने सीखा नहीं...
    बेहतरीन रचना... शुभकामनायें

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  3. चाहता हूँ भूलके सब, दो कदम आगे चलूँ,
    और खुद तकदीर से मैं अबतलक जीता नहीं.
    ...बहुत खूब!

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  4. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 18/12/12 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका इन्तजार है

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    1. तहे दिल से शुक्रिया आदरणीया राजेश कुमारी जी

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  5. बेहतरीन अभिव्यक्ति,सुंदर रचना,,,,बधाई

    recent post: वजूद,

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  6. प्यार समंदर है...दो बीता नहीं....
    लाजवाब शेर अरुण जी....
    बहुत खूब.

    अनु

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  7. आह निकलेगी नहीं, तुम लाख चाहो भी सनम,
    दर्द की आदत मुझे है, मैं जखम सीता नहीं,..
    वाह ... बेहतरीन

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  8. गज़ल के नुक्तों को चुन-चुन,गलीचा बिन दिया.

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  9. गज़ल के नुक्तों को चुन-चुन,गलीचा बिन दिया.

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  10. गज़ल के नुक्तों को चुन-चुन,गलीचा बिन दिया.

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  11. क्या खूब लिखते हो दोस्त .


    चाहता हूँ भूलके सब, दो कदम आगे चलूँ,
    और खुद तकदीर से मैं अबतलक जीता नहीं.

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    Replies
    1. आभार आदरणीय वीरेंद्र सर

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  12. "मैं जख्म सीता नहीं " वाह अरुण जी क्या कहने आपके

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  13. अच्छी प्रस्तुति .... अरुन जी

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