याद में तेरी जिऊँ, मैं आज में जीता नहीं,
लड़खड़ाते पांव मेरे, जबकि मैं पीता नहीं,
लड़खड़ाते पांव मेरे, जबकि मैं पीता नहीं,
नाज़ नखरे रख रखें हैं, आज भी संभाल के,
मैं नहीं इतिहास फिरभी, सार या गीता नहीं,
मैं नहीं इतिहास फिरभी, सार या गीता नहीं,
तोलना है तोल लो तुम, नापना है नाप लो,
प्यार मेरा है समंदर, यार दो बीता नहीं,
प्यार मेरा है समंदर, यार दो बीता नहीं,
आह निकलेगी नहीं, तुम लाख चाहो भी सनम,
दर्द की आदत मुझे है, मैं जखम सीता नहीं,
दर्द की आदत मुझे है, मैं जखम सीता नहीं,
चाहता हूँ भूलके सब, दो कदम आगे चलूँ,
और खुद तकदीर से मैं अबतलक जीता नहीं.
और खुद तकदीर से मैं अबतलक जीता नहीं.
आह निकलेगी नहीं, तुम लाख चाहो भी सनम,
ReplyDeleteदर्द की आदत मुझे है, मैं जखम सीता नहीं,..
वाह ... क्या बात है ... कमाल का शेर है अरुण जी ...
आभार आदरणीय दिगंबर सर
Deleteसबकुछ भूलकर कदम आगे बढ़ते रहें,
ReplyDeleteजीतना ही है,हारना तुमने सीखा नहीं...
बेहतरीन रचना... शुभकामनायें
आभार संध्या दीदी
Deleteचाहता हूँ भूलके सब, दो कदम आगे चलूँ,
ReplyDeleteऔर खुद तकदीर से मैं अबतलक जीता नहीं.
...बहुत खूब!
शुक्रिया कविता जी
Deleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 18/12/12 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका इन्तजार है
ReplyDeleteतहे दिल से शुक्रिया आदरणीया राजेश कुमारी जी
Deleteबेहतरीन अभिव्यक्ति,सुंदर रचना,,,,बधाई
ReplyDeleterecent post: वजूद,
धन्यवाद धीरेन्द्र सर
Deleteप्यार समंदर है...दो बीता नहीं....
ReplyDeleteलाजवाब शेर अरुण जी....
बहुत खूब.
अनु
शुक्रिया अनु जी
Deleteआह निकलेगी नहीं, तुम लाख चाहो भी सनम,
ReplyDeleteदर्द की आदत मुझे है, मैं जखम सीता नहीं,..
वाह ... बेहतरीन
अनेक-2 धन्यवाद सदा दी
Deleteगज़ल के नुक्तों को चुन-चुन,गलीचा बिन दिया.
ReplyDeleteगज़ल के नुक्तों को चुन-चुन,गलीचा बिन दिया.
ReplyDeleteगज़ल के नुक्तों को चुन-चुन,गलीचा बिन दिया.
ReplyDeleteआभार आदरणीया
Deleteक्या खूब लिखते हो दोस्त .
ReplyDeleteचाहता हूँ भूलके सब, दो कदम आगे चलूँ,
और खुद तकदीर से मैं अबतलक जीता नहीं.
आभार आदरणीय वीरेंद्र सर
Delete"मैं जख्म सीता नहीं " वाह अरुण जी क्या कहने आपके
ReplyDeleteशुक्रिया रोहित भाई
Deleteबहुत खूब....
ReplyDelete:-)
अच्छी प्रस्तुति .... अरुन जी
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