लगी आग जलके, हुआ राख मंजर,
जुबां सुर्ख मेरी, निगाहें सरोवर,
जुबां सुर्ख मेरी, निगाहें सरोवर,
लुटा चैन मेरा, गई नींद मेरी,
मुहब्बत दिखाए, दिनों रात तेवर,
मुहब्बत दिखाए, दिनों रात तेवर,
सुबह दोपहर हर घड़ी शाम हरपल,
रही याद तेरी हमेशा धरोहर,
रही याद तेरी हमेशा धरोहर,
गिला जिंदगी से रहा हर कदम पे,
बिताता समय हूँ दिनों रात रोकर,
बिताता समय हूँ दिनों रात रोकर,
दिलासा दुआ ना दवा काम आये,
उठे दर्द जब और उमड़े समंदर.
उठे दर्द जब और उमड़े समंदर.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति..!
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (23-12-2012) के चर्चा मंच-1102 (महिला पर प्रभुत्व कायम) पर भी की गई है!
सूचनार्थ!
अनेक-२ धन्यवाद आदरणीय शास्त्री सर
Deleteबेवफा मोहब्बत का यही अफसाना है..
ReplyDeleteदर्द ही दर्द है..संवेदनशील रचना...
शुक्रिया रीना जी
Deleteबहुत उम्दा खूबशूरत गजल,,,,बधाई अरुन जी,,,,
ReplyDeleterecent post : समाधान समस्याओं का,
धन्यवाद आदरणीय धीरेन्द्र सर
Deleteमर्म को जाहिर करती रचना अति सुन्दर
ReplyDeleteआभार सैनी साहब
Deleteदिलासा दुआ ना दवा काम आये,
ReplyDeleteउठे दर्द जब और उमड़े समंदर.
मै इस बात से इत्तिफाक रखता हूँ। बिलकुल सोलह आने सच है।
शुक्रिया आमिर भाई
Deleteलगी आग जलके, हुवा खाक मंज़र..,
ReplyDeleteनिगाह सुर्ख मेरी जबाँ लब-ओ-रु तर..,
लुटा चैन मेरा, गई नींद मेरी..,
मोहब्बत दिखाए, रोज-ओ-शब् अख्तर..,
गिला जिन्दगी से,रहा हर कदम पे..,
गुजरे वक्त मेरा माहो-साल रोकर..,
लम्हा-दर लम्हा पहरो-दर-पहर..,
रही याद तेरी, अमानत बन कर..,
दिलासा दुआ ना दवा काम आई..,
उठा दर्द दिल में साहिलों-समंदर.....
वाह नीतू जी वाह आपने तो रचना में चार चाँद लगा दिया शुक्रिया
Deleteकुछ ऐसा भी तमाशा कभी खुदा दिखलाये
ReplyDeleteखुद दर्द ही दर्द की दवा बन जाए ... बेहतरीन गज़ल अरुण!
बहुत-२ शुक्रिया शालिनी जी
DeleteAti Sunder......Aur Kya kahoon arun bhai
ReplyDeleteशुक्रिया संजय भाई
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