ओ. बी. ओ. तरही मुशायरा अंक - ३३ के अंतर्गत शामिल मेरी दो गज़लें.
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जीजा बुरा न मानो होली बता के मारा,
सूरत बिगाड़ डाली कीचड़ उठा के मारा,
खटिया थी टूटी फूटी खटमल भरे हुए थे,
सर्दी की रात छत पर बिस्तर लगा के मारा,
काजल कभी तो शैम्पू बिंदी कभी लिपिस्टिक,
बीबी ने बैंक खाता खाली करा के मारा,
अंदाज था निराला पहना था चस्मा काला,
इक आँख से थी कानी मुझको पटा के मारा,
गावों की छोरियों को मैंने बहुत पटाया,
शहरों की लड़कियों ने बुद्धू बना के मारा ....
................... २ ...................
बासी रखी मिठाई मुझको खिला के मारा,
मोटी छुपाके घर में पतली दिखा के मारा,
जैसे ही मैंने बोला शादी नहीं करूँगा,
साले ने मुझको चाँटा बत्ती बुझा के मारा,
उसको पता चला जब मैं हो गया दिवाना,
मनमोहनी ने नस्तर मुझको रिझा के मारा,
आया बहुत दिनों के मैं बाद ओ बी ओ पर
ग़ज़लों के माहिरों ने मुझको हँसा के मारा
तकदीर ने हमेशा इस जिंदगी के पथपर
इसको हँसा के मारा उसको रुला के मारा .....
खटिया थी टूटी फूटी खटमल भरे हुए थे,
ReplyDeleteसर्दी की रात छत पर बिस्तर लगा के मारा,..
वाह जी वाह ... गज़ब का हास्य लिए ... मस्त गज़ल है ...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शुक्रवार के चर्चा मंच-1198 पर भी होगी!
सूचनार्थ...सादर!
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होली तो अब हो ली...! लेकिन शुभकामनाएँ तो बनती ही हैं।
इसलिए होली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
बहुत ही बेहतरीन गज़लें,होली की हार्दिक शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteतकदीर ने हमेशा इस जिंदगी के पथपर
ReplyDeleteइसको हँसा के मारा उसको रुला के मारा .....
gazal ke bindaas bolon ne ,
hamko chhakaake maaraa
ReplyDeleteपहले पिलाई भांग ,फिर पौवा पिलाके मारा ,
जोबन के अलहड़ पन ने ,हमको छका के मारा .
aapki ye rchna bhut achchi lgi ..........aapne sch much ka hsa ke mara .....
ReplyDeleteसुन्दर हास्य रचनाएँ ... शुभकामनायें
ReplyDeletewaah bahut bahut sundar ..holi khub rahi yah bhi is andaz mein
ReplyDeleteबहुत बढ़ियाँ गजल...
ReplyDelete:-)
वाह भाई जी, गजल में व्यंग और हास्य पिरोना सहज नहीं है
ReplyDeleteआपने कमाल कर दिया-सुंदर अनुभूति
बहुत बहुत बधाई
आग्रह है मेरे ब्लॉग jyoti-khare.blogspot.in
में सम्मलित हों ख़ुशी होगी
बेहतरीन सुंदर हास्य गजल ,,,,,
ReplyDeleteRecent post: होली की हुडदंग काव्यान्जलि के संग,
अरून भाई वाह, वाह! वहां आनन्द तो आया ही था, यहां आनन्द बढ़ गया। यही आपकी रचनाओं का जादू भी है जितना पढ़ो बढ़कर आनन्द देती हैं।
ReplyDeleteहोली की हार्दिक शुभकामनाएं!
हमेशा की तरह ये पोस्ट भी बेह्तरीन है.....अरून भाई
ReplyDeleteसुंदर,व्यंग और हास्य
ReplyDelete
ReplyDeleteमजा आ गया बहुत सुन्दर गजल
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बहुत खूब,मारने के ढंग-बेढंग
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....होली की हार्दिक शुभकामनाएं ।।
ReplyDeleteपधारें कैसे खेलूं तुम बिन होली पिया...
सुन्दर ग़ज़लें.
ReplyDeleteअरुण भाई , भाभी जी को जन्मदिवस की मुबारक बाद ,और आपको भी। साथ ही ये रिक्वेस्ट है की शास्त्री जी की रचना को यहाँ भी प्रकाशित करें।
ReplyDeleteये गजलें बड़ी गुदगुदाने वाली हैं ..
ReplyDeleteमेरी तो हँसी थम ही नहीं रही है