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Saturday, November 21, 2015

ग़ज़ल: दूरियों का फैसला स्वीकार इस अनुबंध पर

दूरियों का फैसला स्वीकार इस अनुबंध पर,
तुम खयालों का भी जाओगे घरौंदा छोड़कर,

दो मेरे प्रश्नों के उत्तर गुत्थियों को खोलकर,
क्यों अकारण तुम विरह के मार्ग पर हो अग्रसर,

जोत जाना तुम हृदय की प्रेम से सिंचित धरा,
मध्य उपजे मोह का प्रत्येक पौधा तोड़कर,

दो वचन गतिमान जीवन पूर्ववत होगा मेरा,
इन दिनों का वस्तुतः होगा न किंचित भी असर,

और हैं दो चार बातें इनका भी हल कीजिये,
चैन, नींदें, स्वप्न, खुशियाँ हो न जाएँ बेखबर,

तुम स्वयं ही तय करो इस प्रेम की श्रेणी प्रिये,
भावनाओं का मिलन? कहना उचित है सोचकर?

सोचना गंभीरता से क्या उचित है यह कदम,
यदि अकारण है तो ये प्रतिघात है विश्वास पर..

अरुन अनन्त

Friday, September 19, 2014

ग़ज़ल : मौत के सँग ब्याह करके


देह का घर दाह करके,
पूर्ण अंतिम चाह करके,

जिंदगी ठुकरा चला हूँ,
मौत के सँग ब्याह करके,

खूब सुख दुख ने छकाया,
उम्र भर गुमराह करके,

प्रियतमा ने पा लिया है,
मुझको मुझसे डाह करके,

पूर्ण हर कर्तव्य आखिर,
मैं चला निर्वाह करके,

पुछल्ला :-
यदि ग़ज़ल रुचिकर लगे तो,
मित्र पढ़ना वाह करके,

Wednesday, June 4, 2014

ग़ज़ल : मुग्धकारी भाव आखर अब कहाँ

मुग्धकारी भाव आखर अब कहाँ,
प्रेम निश्छल वह परस्पर अब कहाँ,

मात गंगा का किया आँचल मलिन,
स्वच्छ निर्मल जल सरोवर अब कहाँ,

रंग त्योहारों का फीका हो चला,
सीख पुरखों की धरोहर अब कहाँ,

सभ्यता सम्मान मर्यादा मनुज,
संस्कारों का वो जेवर अब कहाँ,

सांझ बोझिल दिन ब दिन होती गई,
भोर वह सुखमय मनोहर अब कहाँ...

Tuesday, April 22, 2014

ग़ज़ल : मध्य अपने आग जो जलती नहीं संदेह की

ग़ज़ल :
बह्र : रमल मुसम्मन महजूफ

मध्य अपने आग जो जलती नहीं संदेह की,
टूट कर दो भाग में बँटती नहीं इक जिंदगी.

हम गलतफहमी मिटाने की न कोशिश कर सके,
कुछ समय का दोष था कुछ आपसी नाराजगी,

आज क्यों इतनी कमी खलने लगी है आपको,
कल तलक मेरी नहीं स्वीकार थी मौजूदगी,

यूँ धराशायी नहीं ये स्वप्न होते टूटकर,
आखिरी क्षण तक नहीं बहती ये नैनों की नदी,

रात भर करवट बदलना याद करना रात भर,
एक अरसे से यही करवा रही है बेबसी.........

********************
अरुन शर्मा अनन्त
********************

Sunday, March 23, 2014

ग़ज़ल : अरुन शर्मा 'अनन्त'

परस्पर प्रेम का नाता पुरातन छोड़ आया हूँ,
नगर की चाह में मैं गाँव पावन छोड़ आया हूँ,

सरोवर गुल बहारें स्वच्छ उपवन छोड़ आया हूँ.
सुगन्धित धूप से तुलसी का आँगन छोड़ आया हूँ,

कि जिन नैनों में केवल प्रेम का सागर छलकता था,
हमेशा के लिए मैं उनमें सावन छोड़ आया हूँ,

गगनचुम्बी इमारत की लिए मैं लालसा मन में,
बुजुर्गों की हवेली माँ का दामन छोड़ आया हूँ.

मिलन को हर घड़ी व्याकुल तड़पती प्रियतमा का मैं,
विरह की वेदना में टूटता मन छोड़ आया हूँ,

अपरिचित व्यक्तियों से मैं नया रिश्ता बनाने को,
जुड़े बचपन से कितने दिल के बंधन छोड़ आया हूँ.

Monday, December 23, 2013

आखिरी लम्हा सफ़र का पर निराला दे.

छल कपट लालच बुराई को निकाला दे,
जग हुआ अंधा अँधेरे से, उजाला दे,

झूठ हिंसा पाप से सबको बचा या रब,
शान्ति सुख संतोष देती पाठशाला दे,

शुद्धता जिसमें घुली हो जिसमें सच्चाई,
प्रेम से गूँथी हुई हाथों में माला दे,

स्वर्ण आभूषण की मुझको है नहीं चाहत,
भूख मिट जाए कि उतना ही निवाला दे,

जिंदगी जैसी भी चाहे दे मुझे मौला,
आखिरी लम्हा सफ़र का पर निराला दे..

Sunday, December 1, 2013

दो गज़लें : अरुन शर्मा 'अनन्त'

कहानी प्रेम की लिख दो,
ह्रदय का पृष्ठ सादा है,

यही दिल की तमन्ना है,
तुम्हारा क्या इरादा है,

सुनो पर छोड़ मत देना,
इसी का डर जियादा है,

कभी ये कह न देना तुम,
कि वादा सिर्फ वादा है,

जुए की तुम महारानी,
बेचारा दिल तो प्यादा है....
...........................................................................................
गिला शिकवा शिकायत है,
मुहब्बत पर निहायत है,

खुदा का है करम लेकिन,
तुम्हारी भी इनायत है,

कभी मेरी खिलाफत तो,
कभी मेरी हिमायत है,
(हिमायत - तरफदारी)

बुराई देखती हो तुम,
कभी देखो किफ़ायत है,
(किफ़ायत - गुण)

सदा दिल को दुखाने का,
तुम्हें हक़ है रियायत है....

Friday, October 25, 2013

ग़ज़ल : हमेशा के लिए गायब लबों से मुस्कुराहट है

बह्र : हज़ज मुसम्मन सालिम
१२२२, १२२२, १२२२, १२२२,
....................................................

हमेशा के लिए गायब लबों से मुस्कुराहट है,
मुहब्बत में न जाने क्यों अजब सी झुन्झुलाहट है,

निगाहों से अचानक गर बहें आंसू समझ लेना,
सितम ढाने ह्रदय पर हो चुकी यादों की आहट है,

दिखा कर ख्वाब आँखों को रुलाया खून के आंसू,
जुबां पे बद्दुआ बस और भीतर चिडचिड़ाहट है,

चला कर हाशिये त्यौहार की गर्दन उड़ा डाली,
दिवाली की हुई फीकी बहुत ही जगमगाहट है,

बदलने गाँव का मौसम लगा है और तेजी से,
किवाड़ों में अदब की देख होती चरमराहट है...

Sunday, October 13, 2013

बँधी भैंसें तबेले में

ग़ज़ल
बह्र : हज़ज़ मुरब्बा सालिम
1222 , 1222 ,
.........................................................
बँधी भैंसें तबेले में,
करें बातें अकेले में,

अजब इन्सान है देखो,
फँसा रहता झमेले में,

मिले जो इनमें कड़वाहट,
नहीं मिलती करेले में,


हुनर जो लेरुओं में है,
नहीं इंसा गदेले में,


भले हम जानवर होकर,
यहाँ आदम के मेले में,

गुरु तो हैं गुरु लेकिन,
भरा है ज्ञान चेले में..

Monday, September 30, 2013

ग़ज़ल : हमारा प्रेम होता जो कन्हैया और राधा सा

ग़ज़ल
(बह्र: हज़ज़ मुसम्मन सालिम )
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन
..........................................................

अयोध्या में न था संभव जहाँ कुछ राम से पहले,
वहीँ गोकुल में कुछ होता न था घनश्याम से पहले,

बड़े ही प्रेम से श्री राम जी लक्ष्मण से कहते हैं,
अनुज बाधाएँ आती हैं भले हर काम से पहले,

समर्पित गोपियों ने कर दिया जीवन मुरारी को,
नहीं कुछ श्याम से बढ़कर नहीं कुछ श्याम से पहले,

हमारा प्रेम होता जो कन्हैया और राधा सा,
समझ लेते ह्रदय की भावना पैगाम से पहले,

भले लक्ष्मी नारायण कहता है संसार हे राधा,
तुम्हारा नाम भी आएगा मेरे नाम से पहले....

Sunday, July 28, 2013

ग़ज़ल : तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा अंक - ३७ वें में प्रस्तुत मेरी ग़ज़ल :-
(बह्र: बहरे हज़ज़ मुसद्दस महजूफ)

.......................................
जिसे अपना बनाए जा रहा हूँ,
उसी से चोट दिल पे खा रहा हूँ,

यकीं मुझपे करेगी या नहीं वो,
अभी मैं आजमाया जा रहा हूँ,

मुहब्बत में जखम तो लाजमी है,
दिवाने दिल को ये समझा रहा हूँ,

अकेला रात की बाँहों में छुपकर,
निगाहों की नमी छलका रहा हूँ,

जुदाई की घडी में आज कल मैं,
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ..

Friday, July 19, 2013

ग़ज़ल : अजब ये रोग है दिल का

पेश-ए-खिदमत है छोटी बहर की ग़ज़ल.

बहर : हज़ज मुरब्बा सालिम
1222, 1222

.............................
परेशानी बढ़ाता है,
सदा पागल बनाता है,

अजब ये रोग है दिल का,
हँसाता है रुलाता है,

दुआओं से दवाओं से,
नहीं आराम आता है,

कभी छलनी जिगर कर दे,
कभी मलहम लगाता है,

हजारों मुश्किलें देकर,
दिलों को आजमाता है,

गुजरती रात है तन्हा,
सवेरे तक जगाता है,

नसीबा ही जुदा करता,
नसीबा ही मिलाता है,

कभी ख्वाबों के सौ टुकड़े,
कभी जन्नत दिखाता है,

उमर लम्बी यही कर दे,
यही जीवन मिटाता है...
.............................

अरुन शर्मा 'अनन्त'

Monday, June 24, 2013

ग़ज़ल : गिरगिट की भांति बदले जो रंग दोस्तों

फाईलु / फाइलातुन / फाईलु / फाइलुन
वज्न : २२१, २१२२, २२१, २१२

नैनो के जानलेवा औजार से बचें,
करुणा दया ख़तम दिल में प्यार से बचें,

पत्थर से दोस्त वाकिफ बेशक से हों न हों,
है आईने की फितरत दीदार से बचें,

आदत सियासती है धोखे से वार की,
तलवार से डरे ना सरकार से बचें,

महँगाई छू रही अब आसमान को,
परिवार खुश रहेगा विस्तार से बचें,

गिरगिट की भांति बदले जो रंग दोस्तों,
जीवन में खास ऐसे किरदार से बचें,

नफरत नहीं गरीबों के वास्ते सही,
यारों सदा दिमागी बीमार से बचें,

जो चासनी लबों पर रख के चले सदा,
धोखा मिलेगा ऐसे मक्कार से बचें,

Sunday, June 16, 2013

ग़ज़ल : शीर्षक पिता

 "पितृ दिवस" पर सभी पिताओं को सादर प्रणाम नमन, सभी पिताओं को समर्पित एक ग़ज़ल.

ग़ज़ल : शीर्षक पिता
बह्र :हजज मुसम्मन सालिम
......................................................

घिरा जब भी अँधेरों में सही रस्ता दिखाते हैं ।
बढ़ा कर हाँथ वो अपना मुसीबत से बचाते हैं ।।

बड़ों को मान नारी को सदा सम्मान ही देना ।
पिता जी प्रेम से शिक्षा भरी बातें सिखाते हैं ।।

दिखावा झूठ धोखा जुर्म से दूरी सदा रखना ।
बुराई की हकीकत से मुझे अवगत कराते हैं ।।

सफ़र काटों भरा हो पर नहीं थकना नहीं रुकना ।
बिछेंगे फूल क़दमों में अगर चलते ही जाते हैं ।।

ख़ुशी के वास्ते मेरी दुआ हरपल करें रब से ।
जरा सी मांग पर सर्वस्व वो अपना लुटाते हैं ।।

मुसीबत में फँसा हो गर कोई बढ़कर मदद करना ।
वही इंसान हैं इंसान के जो काम आते हैं ।।

Thursday, May 30, 2013

छोटी बहर की छोटी ग़ज़ल

निगाहों में भर ले,
मुझे प्यार कर ले, 

खिलौना बनाकर,
मजा उम्रभर ले, 

तू सुख चैन सारा,
दिवाने का हर ले, 

तकूँ राह तेरी,
गली से गुजर ले,

मुहब्बत में मेरी,
तू सज ले संवर ले...

Tuesday, May 28, 2013

ग़ज़ल : प्यार का रोग दिल लगा लाया

(बह्र: खफीफ मुसद्दस मख्बून मक्तुअ)
२१२२-१२१२-२२ 

फाइलातुन मुफाइलुन फेलुन 


प्यार का रोग दिल लगा लाया,
दर्द तकलीफ भी बढ़ा लाया,

याद में डूब मैं सनम खुद को,
रात भर नींद में जगा लाया,

तुम ही से जिंदगी दिवाने की,
साथ मरने तलक लिखा लाया,

चाँद तारों के शहर में तुमसे,
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया,

तेरी अँखियों से लूट कर काजल,
मेघ घनघोर है घटा लाया.

Monday, May 20, 2013

ग़ज़ल : कदम डगमगाए जुबां लडखडाये

ओबीओ लाईव महा-उत्सव के 31 वें में सम्मिलित ग़ज़ल:-
विषय : "मद्यपान निषेध"
बह्र : मुतकारिब मुसम्मन सालिम (१२२, १२२, १२२, १२२)

कदम डगमगाए जुबां लडखडाये,
बुरी लत ये मदिरा हजारो लगाये,

न परवाह घर की न इज्जत की चिंता,
नशा ये असर सिर्फ अपना दिखाये,

शराबी - कबाबी- पियक्कड़ - नशेड़ी,
नए नाम से रोज दुनिया बुलाये,

सड़क पे कभी तो कभी नालियों में,
नशा आदमी को नज़र से गिराये,

उजाड़े ये संसार हंसी का ख़ुशी का,
मुहब्बत को ये मार ठोकर भगाये.

Thursday, May 9, 2013

ग़ज़ल : चोरी घोटाला और काली कमाई

बह्र : मुतकारिब मुसम्मन सालिम

चोरी घोटाला और काली कमाई,
गुनाहों के दरिया में दुनिया डुबाई,

निगाहों में रखने लगे लोग खंजर,
पिशाचों ने मानव की चमड़ी चढ़ाई,

दिनों रात उसका ही छप्पर चुआ है,
गगनचुम्बी जिसने इमारत बनाई,

कपूतों की संख्या बढ़ेगी जमीं पे,
कि माता कुमाता अगर हो न पाई,

हमेशा से सबको ये कानून देता,
हिरासत-मुकदमा-ब-इज्जत रिहाई,

गली मोड़ नुक्कड़ पे लाखों दरिन्दे,
फ़रिश्ता नहीं इक भी देता दिखाई...

Wednesday, May 1, 2013

ग़ज़ल : आसमां की सैर करने चाँद चलकर आ गया

बह्र : रमल मुसम्मन सालिम

वक्त ने करवट बदल ली जो अँधेरा छा गया,
आसमां की सैर करने चाँद चलकर आ गया,

प्यार के इस खेल में मकसद छुपा कुछ और था,
बोल कर दो बोल मीठे जुल्म दिल पे ढा गया,

बाढ़ यूँ ख्वाबों की आई है जमीं पर नींद की,
चैन तक अपनी निगाहों का जमाना खा गया,

झूठ का बाज़ार है सच बोलना बेकार है,
झूठ की आदत पड़ी है झूठ मन को भा गया,

तालियों की गडगडाहट संग बाजी सीटियाँ,
देश का नेता हमारा यूँ शहद बरसा गया.....

Monday, April 1, 2013

ग़ज़ल : अगर मांगने में तू सच्चा हुआ है

वज्न : १२२ , १२२ , १२२ , १२२ 
बहर : मुतकारिब मुसम्मन सालिम

झपकती पलक और लगती दुआ है,
अगर मांगने में तू सच्चा हुआ है,

जखम हो रहे दिन ब दिन और गहरे,
नयन की कटारी ने दिल को छुआ है,

नहीं बच सकेगा जतन लाख कर ले,
नसीबा ने खेला सदा ही जुआ है,

न बरसात ठहरी न मैं रात सोया,
कि रह रह के छप्पर सुबह तक चुआ है,

सुखों का गरीबों के घर ना ठिकाना,
दुखों ने मुफत में भरी बद - दुआ है .