ओपन बुक्स ऑनलाइन ,चित्र से काव्य तक छंदोत्सव, अंक-२५ में मेरी रचना
दोहे
भीतर से घबरा रहा, मन में जपता राम ।
किसी तरह हे राम जी, आज बना दो काम ।।
दुबला पतला जिस्म है, सीना रहा फुलाय ।
जैसे तैसे हो सके, बस भर्ती हो जाय ।।
डिग्री बी ए की लिए, दुर्बल लिए शरीर ।
खाकी वर्दी जो मिले, चमके फिर तकदीर ।।
सीना है आगे किये, भीतर खींचे साँस ।
हाँथ लगे ज्यों सींक से, पाँव लगे ज्यों बाँस ।।
इक सीना नपवा रहा, दूजा है तैयार ।
खाते जैसे हैं हवा, लगते हैं बीमार ।।
खाकी से दूरी भली, कडवी इनकी चाय ।
ना तो अच्छी दुश्मनी, ना तो यारी भाय ।।
बिगड़ी नीयत देखके सौ रूपये का नोट ।
भोली सूरत ले फिरें, रखते मन में खोट ।।
बहुत बढ़िया,सटीक दोहे !!! अरुन जी,
ReplyDeleteRecent post: तुम्हारा चेहरा ,
शुभ संध्या
ReplyDeleteभीतर से घबरा रहा, मन में जपता राम ।
किसी तरह हे राम जी, आज बना दो काम ।।
अंतिम अरदास....
बन जाए काम
तो हो जाए दास.......
सादर
Great couplets !...Waah !
ReplyDeleteसुन्दर संदेस देते बेहतरीन दोहे,आभार मित्रवर.
ReplyDeleteसटीक दोहे
ReplyDeleteबढिया, क्या बात
ReplyDeleteवाह .. सटीक हैं सभी दोहे अरुण जी .... बहुत उम्दा ...
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