माँ तुमसे जीवन मिला, माँ तुमसे यह रूप।
माँ तुम मेरी छाँव हो, माँ तुम मेरी धूप ।।
तू मेरा भगवान माँ, तू मेरा संसार ।
तेरे बिन मैं, मैं नहीं, बंजर हूँ बेकार ।।
पूजा माँ की कीजिये, कीजे न तिरस्कार ।
धरती पर मिलता नहीं, माँ सा सच्चा प्यार ।।
छू मंतर पीड़ा करे, भर दे पल में घाव ।
माँ की ममता का कहीं, कोई मोल न भाव ।।
माँ तेरी महिमा अगम, कैसे करूँ बखान ।
संभव परिभाषा नहीं, संभव नहीं विधान ।।
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteक्या बात है ?
भावपूर्ण रचना !!
ReplyDeleteनमस्कार
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (13-05-2013) के चर्चा मंच अपनी प्रतिक्रिया के लिए पधारें
सूचनार्थ
बहुत ही सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति .
ReplyDeleteमाँ तेरी महिमा अगम, कैसे करूँ बखान ।
ReplyDeleteसंभव परिभाषा नहीं, संभव नहीं विधान ।।
बिलकुल सही...माँ को नमन
तू मेरा भगवान माँ, तू मेरा संसार ।
ReplyDeleteतेरे बिन मैं, मैं नहीं, बंजर हूँ बेकार ।sacchi bat ,,,,,,
बहुत ही सुन्दर रचना...
ReplyDeleteकोमल और ममतामयी ...
सुन्दर :-)
माँ तेरी महिमा अगम, कैसे करूँ बखान ।
ReplyDeleteसंभव परिभाषा नहीं, संभव नहीं विधान ।।
अरुण जी बिलकुल सही कहा .... माँ को किसी एक परिभाषा में परिभाषित नहीं किया जा सकता ... माँ तो गुणों की खान है बखान करते करते थक जायेंगे लेकिन माँ के गुण और माँ की महिमा का अंत न होगा ... बधाई !
माँ तेरी महिमा अगम, कैसे करूँ बखान ।
ReplyDeleteसंभव परिभाषा नहीं, संभव नहीं विधान ।।
माँ तो कण-कण में समाई ...
तभी जो बन श्रद्धा लेखनी में उतर आई है .... अनुपम प्रस्तुति
pyare se bhaw ka samavesh ... behtareen...
ReplyDeleteमाँ तेरी महिमा अगम, कैसे करूँ बखान ।
संभव परिभाषा नहीं, संभव नहीं विधान ।।
काशः,मां को हर पल याद रख पाएं.
Deleteमार्मिक और भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteमाँ को समर्पित
बधाई
आग्रह है पढ़े "अम्मा"
http://jyoti-khare.blogspot.in
माँ ........बस......माँ !
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