ओबीओ लाईव महा-उत्सव के 31 वें में सम्मिलित ग़ज़ल:-
विषय : "मद्यपान निषेध"
बह्र : मुतकारिब मुसम्मन सालिम (१२२, १२२, १२२, १२२)
कदम डगमगाए जुबां लडखडाये,
बुरी लत ये मदिरा हजारो लगाये,
न परवाह घर की न इज्जत की चिंता,
नशा ये असर सिर्फ अपना दिखाये,
शराबी - कबाबी- पियक्कड़ - नशेड़ी,
नए नाम से रोज दुनिया बुलाये,
सड़क पे कभी तो कभी नालियों में,
नशा आदमी को नज़र से गिराये,
उजाड़े ये संसार हंसी का ख़ुशी का,
मुहब्बत को ये मार ठोकर भगाये.
विषय : "मद्यपान निषेध"
बह्र : मुतकारिब मुसम्मन सालिम (१२२, १२२, १२२, १२२)
कदम डगमगाए जुबां लडखडाये,
बुरी लत ये मदिरा हजारो लगाये,
न परवाह घर की न इज्जत की चिंता,
नशा ये असर सिर्फ अपना दिखाये,
शराबी - कबाबी- पियक्कड़ - नशेड़ी,
नए नाम से रोज दुनिया बुलाये,
सड़क पे कभी तो कभी नालियों में,
नशा आदमी को नज़र से गिराये,
उजाड़े ये संसार हंसी का ख़ुशी का,
मुहब्बत को ये मार ठोकर भगाये.
अब किसे सही माने आपको या फिर बच्चन जी को..
ReplyDeleteबैर बढ़ाते मंदिर मस्जिद, मेल कराती मधुशाला..
बड़े बच्चन
नशा शराब मे होती तो नाचती बोतल,
मैकदे झूमते पैमानों में होती हलचल।
छोटे बच्चन
हाहाहहा
बढिया रचना !
हाहाहा
Deleteबहुत खूब sir
वाह ... बहुत ही बढिया
ReplyDeleteमधु, मय , हाला और मधुशाला
ReplyDeleteयही है माया जिसने सबको भ्रम में डाला
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
latest postअनुभूति : विविधा
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शराब नागरिको के तन,मन,धन,चिंतन और चरित्र को स्वाह कर अपराध,अनाचार की डगर पर फैँक देती है.बहुत ही बेहतरीन सन्देश.
ReplyDeleteमानो महापुरुषों का कहना,दारू से सदा दूर रहना ।
दारू सभी दु:खो की खान है,दारू खोती आदर मान है"
आदरणीय शराब ने न जाने कितने घर उजाड़े हैं लेकिन फिर भी सेवन करने वाले करते हैं ... फिर चाहे नाली में गिरे या कुए में ...
ReplyDeletebahut sundar..........
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर..
ReplyDeleteयुवाओं के नशे का शिकार होना. जो कल के होने वाले देश के जांबाज कर्णधार हैं आज वही सबसे ज्यादा नशे के शिकार हैं. जिनको देश की उन्नति में अपनी उर्जा लगानी थी वो आज अपनी अनमोल शारीरिक और मानसिक उर्जा चोरी, लूट-पाट और मर्डर जैसी सामाजिक कुरीतिओं में नष्ट कर रहे है.बेहतरीन संदेश.
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार २ १ / ५ /१ ३ को चर्चामंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है ।
ReplyDeleteशराबी - कबाबी- पियक्कड़ - नशेड़ी,
ReplyDeleteनए नाम से रोज दुनिया बुलाये,...
लाजवाब शेर ... सच है नशे की लत बुरी है ... बरबाद कर देती है इंसान को ...
कमाल के शेर हैं ...
मद्यपान निषेध पर सशक्त ग़ज़ल ....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteपर उनको कौन सुनाए अरुण आपकी गजल
कौन समझाए ?
हाहा हाहा
बहुत ही बढ़िया अरुण जी ..
ReplyDeleteबेहतरीन रचना शराब के दुखद सामाजिक पक्ष पर .
ReplyDeleteअपनी बात को बहुत ही अच्छे शब्दों में व्यक्त किया है आपने कविता के माध्यम से.... बेहतरीन रचना....
ReplyDeleteउजाड़े ये संसार हंसी का ख़ुशी का,
ReplyDeleteअच्छी और उपयोगी प्रस्तुति....
सुन्दर सन्देश.
ReplyDeletebahut khoob
ReplyDelete:-)
ReplyDeleteबहुत खूब कहा.....
अनु
ReplyDeleteरागात्मक बढ़िया प्रस्तुति .शिक्षा देती सशक्त अभिव्यक्ति रागात्मक सन्देश सकारात्मक जीवन के लिए ....ॐ शान्ति .नशा ही करना है तो नारायणी करो न .......
आदरणीय आपकी यह गज़ल निर्झर टाइम्स पर 'विधाओं की बहार...'में संकलित की गई है।
ReplyDeleteकृपया http://nirjhar.times.blogspot.com अवलोकन करें!
सादर
सही फ़रमाया आपने अरुन जी...
ReplyDelete~सादर!!!
बहुत खूब....
ReplyDelete:-)
बढ़िया ग़ज़ल!
ReplyDeletemakshad me kamyaab gajal
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