नित नैनो में गन्दगी, होती रही विराज..
कालंकित होता रहा, चुप्पी धरे समाज..
सज्जनता है मिट गई, और गया व्यवहार.
नहीं पुरातन सभ्यता, नहीं तीज त्योहार.
कोमलता भीतर नहीं, नहीं जिगर में पीर.
बहुत दुशाशन हैं यहाँ, इक नहि अर्जुन वीर.
अनहोनी होने लगी, गया भरोसा टूट ।
खुलेआम अब हो रही, मर्यादा की लूट ।।
खुलेआम अब हो रही, मर्यादा की लूट ।।
गलत विचारों को लिए, फिरते दुर्जन लोग ।
कटु भाषा हैं बोलते, और परोसें रोग ।।
सदाचार है लुट गया, और गया विश्वास ।
घटनाएं यूँ देखके, मन है हुआ उदास ।।
बिना बात उलझो नहीं, करो न वाद-विवाद.
ढाई आखर प्रेम के, शब्द -शब्द में स्वाद...
बहुत बेहतरीन उम्दा दोहे ,,,वाह!!!वाह ,,,अरुन जी,,,
ReplyDeleteRECENT POST: दीदार होता है,
बहुत ही सुन्दर और सार्थक संदेश देते दोहे,शुक्रिया मित्रवर.
ReplyDeleteसटीक दोहे !!
ReplyDeleteअभी जो हो रहा है उसपर समाज देश सब मौन है.अभी के सार्थकता को वयां करती सुंदर दोहे.....
ReplyDeleteअरे वाह!
ReplyDeleteअरे वाह!
ReplyDeleteबिना बात उलझो नहीं, करो न वाद-विवाद.
ReplyDeleteढाई आखर प्रेम के, शब्द -शब्द में स्वाद... क्या बात है अरुण जी , बहुत ही सुन्दर, सार्थक व समसामयिक दोहे लिखे हैं आपने ..बधाई!
बहुत सुन्दर और सार्थक दोहे!
ReplyDeleteसाझा करने के लिए आभार...!
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सुखद सलोने सपनों में खोइए..!
ज़िन्दगी का भार प्यार से ढोइए...!!
शुभ रात्रि ....!
बहुत दुशाशन हैं यहाँ, इक नहि अर्जुन वीर. ...बहुत सटीक दोहे हैं
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