आइये आपका स्वागत है

Monday, June 3, 2013

कुछ दोहे

ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव अंक २६ वें में सम्मिलित दोहे.





जंगल में मंगल करें, पौधों की लें जान
उसी सत्य से चित्र है, करवाता पहचान

धरती बंजर हो रही, चिंतित हुए किसान
 
बिन पानी होता नहीं, हराभरा खलिहान
 
छाती चटकी देखिये, चिथड़े हुए हजार
 अच्छी खेती की धरा, निर्जल है बेकार
 
पोखर सूखे हैं सभी, कुआँ चला पाताल । 
मानव के दुष्कर्म का, ऐसा देखो हाल

पड़ते छाले पाँव में, जख्मी होते हाथ
बर्तन खाली देखके, फिक्र भरे हैं माथ
 
खाने को लाले पड़े, वस्त्रों का आभाव
फिर भी नेता जी कहें, हुआ बहुत बदलाव 

तरह तरह की योजना, में आगे सरकार
अपना सपना ही सदा, करती है साकार

तरह तरह की योजना, सदा बनाते लोग
 अपना सपना ही सदा, करती है साकार

11 comments:

  1. बहुत बढ़िया -
    शुभकामनायें -

    ReplyDelete
  2. बहुत सुंदर यथार्थ से भरी बात कहते दोहे ,,,

    recent post : ऐसी गजल गाता नही,

    ReplyDelete
  3. बहुत सुन्दर दोहे अरुण जी ..... बधाई

    ReplyDelete
  4. जाने कब से चल रहीं ,यहाँ योजना मित्र,
    खुशियों पर पाला पड़ा .धरती हुई दरिद्र !

    ReplyDelete
  5. जन-जीवन से जुड़े बहुत सुन्दर शिक्षाप्रद दोहे!

    ReplyDelete
  6. हर एक दोहे लाजवाब ...

    ReplyDelete
  7. sundar kavitaa saare dohe laazabaab-
    anant jee badhaai .

    ReplyDelete
  8. पोखर सूखे हैं सभी, कुआँ चला पाताल ।
    मानव के दुष्कर्म का, ऐसा देखो हाल ...
    सटीक ... चित्र काव्य और भाव भी ... मानव की त्रासदी भी ...

    ReplyDelete

आइये आपका स्वागत है, इतनी दूर आये हैं तो टिप्पणी करके जाइए, लिखने का हौंसला बना रहेगा. सादर