ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव अंक २६ वें में सम्मिलित दोहे.
जंगल में मंगल करें, पौधों की लें जान ।
उसी सत्य से चित्र है, करवाता पहचान ।।
धरती बंजर हो रही, चिंतित हुए किसान ।
बिन पानी होता नहीं, हराभरा खलिहान ।।
छाती चटकी देखिये, चिथड़े हुए हजार ।
अच्छी खेती की धरा, निर्जल है बेकार ।।
पोखर सूखे हैं सभी, कुआँ चला पाताल ।
मानव के दुष्कर्म का, ऐसा देखो हाल ।।
पड़ते छाले पाँव में, जख्मी होते हाथ ।
बर्तन खाली देखके, फिक्र भरे हैं माथ ।।
खाने को लाले पड़े, वस्त्रों का आभाव ।
फिर भी नेता जी कहें, हुआ बहुत बदलाव ।।
तरह तरह की योजना, में आगे सरकार ।
तरह तरह की योजना, में आगे सरकार ।
अपना सपना ही सदा, करती है साकार ।।
तरह तरह की योजना, सदा बनाते लोग ।
अपना सपना ही सदा, करती है साकार ।।
बहुत बढ़िया -
ReplyDeleteशुभकामनायें -
सुंदर प्रस्तुति अरुण जी
ReplyDeleteinternet download manager के साथ dailymotion के विडियो कैसे डाउनलोड करें
BEHTAREEN PRASTUTI.......
ReplyDeleteबहुत सुंदर, क्या कहने
ReplyDeleteबहुत सुंदर यथार्थ से भरी बात कहते दोहे ,,,
ReplyDeleterecent post : ऐसी गजल गाता नही,
बहुत सुन्दर दोहे अरुण जी ..... बधाई
ReplyDeleteजाने कब से चल रहीं ,यहाँ योजना मित्र,
ReplyDeleteखुशियों पर पाला पड़ा .धरती हुई दरिद्र !
जन-जीवन से जुड़े बहुत सुन्दर शिक्षाप्रद दोहे!
ReplyDeleteहर एक दोहे लाजवाब ...
ReplyDeletesundar kavitaa saare dohe laazabaab-
ReplyDeleteanant jee badhaai .
पोखर सूखे हैं सभी, कुआँ चला पाताल ।
ReplyDeleteमानव के दुष्कर्म का, ऐसा देखो हाल ...
सटीक ... चित्र काव्य और भाव भी ... मानव की त्रासदी भी ...