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Tuesday, August 6, 2013

तुम प्रेम प्रतिज्ञा भूल गई

तुम प्रेम प्रतिज्ञा भूल गई,
मैं भूल गया दुनिया दारी,
पहले दिल का बलिदान दिया,
हौले - हौले धड़कन हारी.

खुशियाँ घर आँगन छोड़ चली,
तुम मुझसे जो मुँह मोड़ चली,
मैं अपनी मंजिल भटक गया,
इन दो लम्हों में अटक गया,

मुरझाई खिलके फुलवारी,
हौले - हौले धड़कन हारी.

मन व्याकुल है बेचैनी है,
यादों की छूरी पैनी है,
नैना सागर भर लेते हैं,
हम अश्कों से तर लेते हैं,

हर रोज चले दिल पे आरी,
हौले - हौले धड़कन हारी...

Wednesday, April 24, 2013

कविता : मैं रसिक लाल- तुम फूलकली

मैं शुष्क धरा, तुम नम बदली.
मैं रसिक लाल, तुम फूलकली.

तुम मीठे रस की मलिका हो,
मैं प्रेमी थोड़ा पागल हूँ.
तुम मंद - मंद मुस्काती हो,
मैं होता रहता घायल हूँ.

तुमसे मिलकर तबियत बदली.
मैं रसिक लाल, तुम फूलकली.

जब ऋतु बासंती बीत गई,
तब तेरी मेरी प्रीत गई.
तुम मुरझाई मैं टूट गया,
मौसम मतवाला रूठ गया.


नैना भीगे, मुस्कान चली
मैं रसिक लाल, तुम फूलकली..