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Monday, September 16, 2013

मैं पिता जबसे हुआ चिंतित हुआ

दूरियों का ही समय निश्चित हुआ,
कब भला शक से दिलों का हित हुआ,


भोज छप्पन हैं किसी के वास्ते,
और कोई स्वाद से वंचित हुआ,


क्या भरोसा देश के कानून पर,
है बुरा जो वो भला साबित हुआ,


बेटियों सँग हादसे यूँ देखकर,
मैं पिता जबसे हुआ चिंतित हुआ,


सभ्यता की देख उड़ती धज्जियाँ,
मन ह्रदय मेरा बहुत कुंठित हुआ..

15 comments:

  1. बहुत बढ़िया..... बहुत ही चिंतित भाव के साथ अभिव्यक्ति...
    हर पिता को चिंता होना स्वाभाविक है आज के स्थिति को देखते हुए ..

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  2. behtreen rachna ..samyik sarthak .. beti ka pita hone ka dard .. aj ki pristhiti me swabhawik roop me ubhra hai ....

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  3. बड़ी ही दिलचस्प रचना रची है ,मैंने इसे आज कई बार पढ़ा। बहुत पसंद आई।

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  4. सुंदर सामायिक गजल !!पिता के नाते चिंता करना स्वाभाविक है,,,

    RECENT POST : बिखरे स्वर.

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  5. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार १७/९/१३ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका वहां स्वागत है।

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  6. स्वाभाविक चिंता सुंदर !

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  7. हर पिता का हृदय चिंतित होता है, यह सब देखकर।

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  8. बेटियों सँग हादसे यूँ देखकर,
    मैं पिता जबसे हुआ चिंतित हुआ,...

    बहुत ही लाजवाब शेर .. नायाब शेर है ये ओर सब शेरों पे भारी है ...
    पूरी गज़ल कामयाब है अपने मकसद में ...

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  9. आज की स्थिति को देखकर हर पिता का चिंतित होना स्वभाविक है..सामायिक रचना..

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  10. yek Pita hi in bhavnayon ko samajh sakta hai....sarthak rachna

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  11. बेटियों सँग हादसे यूँ देखकर,
    मैं पिता जबसे हुआ चिंतित हुआ,

    बहुत बढ़िया अनंत भाई एक तुकबंदी इधर भी

    नोंच खाई जिसने सारी बोटियाँ

    बाल अपराधी वही साबित हुआ ,

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  12. वाकई..पि‍ता बनने के बाद आज के जमाने को देख अनचाहा भय समा जाता है मन में....मगर ये दौर बदलेगा...बहरहाल अच्‍छी लगी रचना

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  13. बेटियों सँग हादसे यूँ देखकर,
    मैं पिता जबसे हुआ चिंतित हुआ,...

    ...........लाजवाब शेर

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