माँ की आँचल के तले, बच्चों का संसार
शिशु बैठा है गोद में, मूंदे दोनों नैन ।
मात लुटाती प्रेम ज्यों, बरसे सावन रैन ।।
जननी चूमे प्रेम से, शिशु को बारम्बार ।
ज्यों शंकर के शीश से, बहे गंग की धार ।।
माँ की आँचल के तले, बच्चों का संसार।
धरती पर संभव नहीं, माँ सा सच्चा प्यार ।।
माँ तेरे से स्पर्श का, सुखद सुखद एहसास ।
तेरी कोमल गोद माँ, कहीं स्वर्ग से खास ।।
नैना सागर भर गए, करके तुझको याद ।
माता तेरे प्रेम का, संभव नहिं अनुवाद ।।
फिर से आकर चूम ले, सूना मेरा माथ ।
वादा कर माँ छोड़कर, जायेगी ना साथ ।।
सचमुच-
ReplyDeleteधरती पर संभव कहाँ-
माँ सा सच्चा प्यार-
बहुत अच्छे
बधाई प्रियवर
बहुत खूब,सुंदर दोहे !
ReplyDeleteRECENT POST : हल निकलेगा
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteबधाई..
:-)
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी का लिंक कल शनिवार (21-09-2013) को "एक भीड़ एक पोस्टर और एक देश" (चर्चा मंचःअंक-1375) पर भी होगा!
हिन्दी पखवाड़े की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteसुंदर रचना, शुभकामनाये
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सटीक रचना !!
ReplyDeletelatest post: क्षमा प्रार्थना (रुबैयाँ छन्द )
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dil se badhai ... bhai :)
ReplyDeletewaise tum sach me behtareen rachnaakar ho..:)
bhai bahut bahut badhai... dil se:)
ReplyDeletetum ek behtareen rachnaaakar ho :)
bahut hi sundar rachna @arun ji .. maa ka pyaar anmol hai .. use bhulana matlab khod ko bhulana ... shubhkamnaye :)
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत बढ़िया दोहावली
ReplyDeleteआपकी यह प्रस्तुति 26-09-2013 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
धन्यवाद
आपकी कविता ने मन को मोह लिया। बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति, शब्दों का सटीक उपयोग। सरल कविताएं ही ज्यादा आकर्षित करती हैं।
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